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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 460 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश स्नानार्द्रमुक्तेष्वनुधूपवासं विन्यस्त सायंतनमल्लिकेषु । 16 / 50 जो स्नान करने पर खोल दिए जाते थे और जिनमें धूप से सुगंधित करके शाम को फूलने वाली चमेली के सुगंधित फूल खोंस दिए जाते थे । तस्य सन्मन्त्रपूताभिः स्नानमद्भिः प्रतीच्छतः । 17/16 मंत्रों से पवित्र हुए जल से स्नान करते समय उनके शरीर का तेज । स्वर्ग 1. त्रिदिव :- [त्रि + दिवम् ] स्वर्ग । नहीष्टमस्य त्रिदिवेऽपि भूपतेरभूदनासाद्यमधिज्य धन्वनः । 3/6 क्योंकि धनुषधारी राजा दिलीप को स्वर्ग की भी वस्तुएँ मिल सकती थी, फिर इस लोक की वस्तुओं की तो बात ही क्या। विषयेषु विनाशधर्मसु त्रिदिवस्थेष्वपि निःस्पृहोऽभवत् । 8 / 10 स्वर्ग के उन सुखों की चाह भी उन्होंने छोड़ दी, जो कभी न कभी नाश हो ही जाते हैं। त्रिदिवोत्सुकयाप्यवेक्ष्य मां निहिताः सत्यममी गुणास्त्वया । 8 / 60 अपने स्वर्ग जाने की उतावलेपन में, यद्यपि तुमने मुझे बहलाने के लिए अपने गुण यहीं छोड़ दिए। चक्रे त्रिदिवनिश्रेणिः सरयूरनुयायिनाम् । 15 / 100 सरयू को उन्होंने अपने पीछे आने वालों के लिए स्वर्ग की सीढ़ी बना दिया । व्यश्रूयतानीकपदावसानं देवादि नाम त्रिदिवेऽपि यस्य । 18 / 10 जिसका देव शब्द से आरंभ होने वाला और अनीक शब्द से अंत होने वाला देवानीक नाम स्वर्ग में भी प्रसिद्ध हो गया । For Private And Personal Use Only 2. त्रिविष्टप : - [त्रि + विष्टपम् ] इन्द्रलोक, स्वर्ग । असौ कुमारस्तमजोऽनुजातस्त्रिविष्टपस्येव पतिं जयन्तः । 6/78 जैसे स्वर्ग के राजा इंद्र के पुत्र जयंत बड़े प्रतापी हुए थे, वैसे ही कुमार अज भी उन्हीं प्रतापी रघु के पुत्र हैं। 3. दिव : - [ दीव्यन्त्यत्र दिव + बा आधारे डि वि :- तारा०; दिव + क] स्वर्ग आकाश, दिन ।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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