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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 31 रघुवंश 5. स्मय :-[स्मि+अच्] अभिमान, घमण्ड, गर्व। ततो यथाव द्विहिताध्वराय तस्मै स्मया वेशविवर्जिताय। 5/19 ब्रह्मचारी कौत्स ने देखा कि विश्वजित यज्ञ करने पर भी रघु को अभिमान छू नहीं गया। अविघ्न 1. अविन :-निर्वाध। अविजमस्तु ते स्थेयाः पितेव धुरि पुत्रिणाम्। 1/91 ईश्वर करे तुम्हें कोई बाधा न हो और जिस प्रकार तुम अपने पिता के योग्य पुत्र हो, वैसे ही तुम्हें भी सुयोग्य पुत्र प्राप्त हो। साध्यम्यहमविघ्नमस्तु ते देवकार्यमुप पादयिष्यतः। 11/91 मैं अब जाता हूँ। आप देवताओं के जो कार्य करने के लिए आए हैं, वह बिना विघ्न के पूरा हो। 2. अनघ :-निष्पाप, निरपराध, अक्षत, घात रहित, सुरक्षित। तदंक शय्याच्युतनाभिनाला कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूतिः। 5/7 हरिणियों के वे छोटे-छोटे बच्चे तो कुशल से हैं न, जिनकी नाभि का नाल ऋषियों की गोद में ही सूखकर गिरता है। 3. निरातंक :-[नृ+क्विप्, इत्वम्+आतंक] भय से मुक्त। पुरुषात्युष जीविन्यो निरातंका निरीतयः। 1/63 मेरी प्रजा में कोई भी न तो बरस से कम आयु पाता और न किसी को किसी प्रकार की ईति तथा विपत्ति का डर रहता है। अश 1. अश्रु :-[नपुं०] [अश्नुते व्याप्नोति नेत्रमदर्शनाय-अश्+क्रुन्] आँसू। रघुभ्रशं वक्षसि तेन ताडितः पपात भूमौ सह सैनिकाश्रुभिः। 3761 उस वज्र की मार से रघु पृथ्वी पर गिर पड़े। उनके गिरते ही सैनिकों ने रोना-पीटना प्रारंभ कर दिया। श्रुत देह विसर्जनः पितुश्चिरमश्रूणि विमुच्य राघवः। 8/25 अपने पिता के देह त्याग का समाचार सुनकर अग्निहोत्र करने वाले अज बहुत रोए। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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