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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org शैल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 417 1. अचल :- पहाड़, चट्टान । प्रकाशश्चाप्रकाशश्च लोकालोक इवाचलः । 1/68 जिस प्रकार लोकालोक नाम का पर्वत, एक ओर से सूर्य का प्रकाश पड़ने से चमकता है और दूसरी ओर प्रकाश न पड़ने से अंधियारा रहता है। विभ्रतोऽस्त्रमचलेऽप्यकुण्ठितं द्वौरिपू मम मतौ समागसौ । 11/74 जिस परशुराम के अस्त्र पहाड़ों से टकराकर भी कुंठित नहीं होते, उसके दो ही शत्रु आज तक समान अपराध करने वाले हुए हैं। 2. अद्रि : - [ अद् + क्रिन्] पहाड़, पत्थर । सा दुष्प्रधर्षा मनसापि हिंस्त्रैरित्यद्रिशोभाप्रहिते क्षणेन । 2/27 कोई भी हिंसक जंतु नंदिनी पर आक्रमण करने की बात भी नहीं सोच सकता । वे पर्वत की शोभा देखने लगे। तदापभृत्येव वनद्विपानां त्रासार्थमस्मिन्नहमद्रिकुक्षौ । 2 / 38 तब से शंकरजी ने जंगली हाथियों को डराने के लिए, मुझे यहाँ पहाड़ की ढाल पर रखवाला बनाकर रख छोड़ा है। असङ्गमद्रिष्वपि सारवत्तया न मे त्वदन्येन विसोढमायुधम् । 3/63 पर्वतों के पंख काटने वाले मेरे कठोर वज्र की चोट को तुम्हें छोड़कर आज तक किसी ने नहीं सहा । For Private And Personal Use Only पौलस्त्यतुलितस्याद्रे रादधान इव ह्रियम् । 4 / 80 कैलासपर्वत को इस बात की लज्जा हुई कि एक बार रावण ने मुझे क्या उठा लिया, कि सभी मुझे हारा हुआ समझने लगे। असौ महेन्द्रादि, समानसारः पतिर्महेन्द्रस्य महोदधेश्च । 6 / 54 ये महेन्द्र पर्वत के समान शक्ति वाले हैं और महेन्द्र पर्वत और समुद्र दोनों पर इनका अधिकार है। अनपढ स्थिति स्तस्थौ विन्ध्याद्रिः प्रकृताविव । 12/31 जैसे अगस्त्य जी की आज्ञा से विंध्याचल अपनी मर्यादा में ही रह गया था । सार्थाः स्वैरं स्वकीयेषु चेरुर्वेश्मस्वि वादिषु । 17/64 व्यापारी लोग ऐसे बेरोक-टोक व्यापार करते थे, कि पहाड़ अपने भवन जैसे सुगम हो गए ।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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