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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 407 अप्यर्धमार्गे परबाणलूना धनुर्भृतां हस्तवतां पृषत्काः । 7/45 जिन धनुषधारियों के हाथ बाण चलाने में सधे हुए थे, उनके बाण यद्यपि शत्रुओं के बाणों से बीच में ही दो टूक हो जाते थे। आकर्णकृष्टा सकृदस्य योद्धौर्वीव बाणान्सुषुवे रिपुदनान्। 7/57 ऐसा जान पड़ता था कि वे जब कान तक धनुष की डोरी खींचते थे, तब उसी में से शत्रुओं का नाश करने वाले बाण निकलते चले जा रहे थे। आकर्णकृष्टमपि कामितया स धन्वी बाणं कृपामृदुमनाः प्रतिसंजहार। 9/57 हरिण के लिए हरिणी का यह प्रेम देखकर उनका हृदय दया से भर आया और उन्होंने कान तक खींचा हुआ भी अपना बाण उतार लिया। अपि तुरगसमीपादुत्पतन्तं मयूरं न स रुचिरकलापं बाणलक्ष्यी चकार। 9/67 कभी-कभी उनके घोड़े के पास से सुंदर चमकीली पूछों वाले मोरे भी उड़ जाते थे, पर ये उन पर बाण नहीं चलाते थे। बाणभिन्न हृदया निपेतुषी सा स्वकाननभुवं न केवलाम्। 11/19 बाण से ताड़का की छाती फट गई और वह नीचे गिरी, तब उसके गिरने से जंगल ही नहीं वरन्। उन्मुखः सपदि लक्ष्मणाग्रजो बाणमाश्रयमुखात्समुद्धरन्। 11/26 उसी समय राम ने अपने तूणीर से बाण निकाले और ऊपर मुँह करके आकाश की ओर देखा। विदुतक्रतुमृगानुसारिणां येन बाणमसृजवृषध्वजः। 11/44 जिसे हाथ में लेकर शंकरजी ने मृग के रूप में दौड़ने वाले यज्ञ देवता के ऊपर बाण छोड़े थे। तैस्त्रयाणां शितैर्बाणैर्यथापूर्व विशुद्धिभिः। 12/48 वे बाण उनके शरीर को छेदकर इतने वेग से निकल गए, कि उनमें रक्त भी नहीं लग सका। सा बाणवर्षिणं रामं योधयित्वा सुरद्विषाम्। 12/50 बाण बरसाने वाले राम से लड़कर वह राक्षसों की सेना। अर्धचन्द्र मुखैर्बाणैश्चिच्छेद कदलसुखम्। 12/96 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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