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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 401 विस्मय 1. अद्भुत् :-[अद् + भू + डुतन्च :-न भूतम् इति वा] आश्चर्यजनक, विचित्र, अचंभा, अचरज, आश्चर्य। तदद्धतं संसदि रात्रिवृत्तं प्रातद्विजेभ्यो नृपतिः शशंस। 16/24 राजा ने रात की वह अचरज भरी घटना प्रातः काल सभा में ब्राह्मणों से कही। 2. विस्मय :-[वि + स्मि + अच्] आश्चर्य, ताज्जुब, अचंभा, अचरज। पुरुषः प्रबभूवाग्नेविस्मयेन सहविजाम्। 10/50 यज्ञ की अग्नि में से एक पुरुष प्रकट हुआ, जिसे देखकर यज्ञ करने वाले सभी ऋषि बड़े आश्चर्य में पड़ गए। सविस्मयो दाशरथेस्तनूजः प्रोवाच पूर्वार्धविसृष्टतल्पः। 16/6 उसे देखकर कुश को बड़ा आश्चर्य हुआ, वै शैया पर आधे उठकर उससे बोले। वीणा 1. परिवादिनी :-वीणा। भ्रमरैः कुसुमानुसारिभिः परिकीर्णा परिवादिनी मुनेः। 8/35 वह माला तो गिर गई पर फूलों के साथ लगे हुए भौरे अभी तक नारद जी की वीणा पर मंडरा रहे थे। 2. वल्लकी :-[वल्ल् + क्वुन् + ङीष्] वीणा। प्रतियोजयित व्यवल्लकी समवस्थामथ सत्वविप्लवात्। 8/41 उस राजा ने (अपनी मृत पत्नी को उसी प्रकार गोद में रख लिया) जैसे तार मिलाने के समय वीणा रख ली जाती है। वल्लकी च हृदयंगमस्वना वल्गुवागपि च वामलोचना। 19/13 गोद में बैठाने योग्य दो ही वस्तुएँ हैं :-एक तो मनोहर शब्दवाली वीणा और दूसरी मधुर-भाषिणी कामिनी। 3. वीणा :-[वेति वृद्धिमात्रमपगच्छति :-वी + न, नि० णत्वम्] सारंगी, वीणा। उपवीणयितुं ययौ खेरुदया वृत्तिपथेन नारदः। 8/33 वीणा के साथ गाना सुनाने के लिए नारद जी आकाश मार्ग से चले जा रहे थे। वेणुना दशनपीडिता धरा वीणया नखपदाङ्कितोरवः। 19/35 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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