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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org विजय 1. जय :- [ जि + अच्] जीत, विजय, सफलता । प्रदक्षिणार्चिर्व्याजने हस्तेनेव जयं ददौ । 4/25 हवन की आग भी दाहिनी ओर घूमती हुई उठ रही थी, मानो अपने हाथ उठा-उठाकर रघु को पहले से ही विजय दे रही हो । 2. विजय : - [ वि + जि + घञ्] जीत, फतह, जय यात्रा । गान्धर्वमादत्स्व यतः प्रयोक्तुर्न चारिहिंसा विजयश्च हस्ते । 5/57 इस गंधर्वास्त्र को ले लीजिए, इसमें यह विशेषता है कि जब आप इसे चलावेंगे, तब आप शत्रु के प्राण लिए बिना ही उसे जीत लेंगे। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे । 12 /44 इन्हें तो हम अकेले अपने धनुष से ही जीत लेंगे, इसलिए उन्होंने सीता की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंप दिया। -: विद्युत 1. तडित : - ( स्त्री० ) [ ताडयति अभ्रम् तड् + इति] बिजली । अन्योन्य शोभापरिवृद्धये वां योगस्तडित्तो दयोरिवास्तु । 6 / 65 इसलिए यदि तुम दोनों का विवाह हो जाएगा, तो तुम ऐसी सुन्दर लगोगी; जैसे बादल के साथ बिजली । 2. विद्युत : - [ विशेषेण द्योतते :- विद्युत् + क्विप्] बिजली, वज्र । प्रावृषेण्यं पयोवाहं विद्युदैरावताविव । 1/36 उस पर बैठे हुए वे दोनों ऐसे जान पड़ते थे, मानो वर्षा के बादल पर ऐरावत और बिजली दोनों चढ़े चले जा रहे हों । सहस्त्रधात्मा व्यरुचद्विभक्तः पयोमुचां पंक्तिषु विद्युतेव । 6/5 मानो लक्ष्मी ने अपनी शोभा उन लोगों में उसी प्रकार बाँट दी हो, जैसे बिजली अपनी चमक बादलों में बाँट देती है। 3. शतह्रद :- [ शो + क् + ह्रदम् ] बिजली । 395 शतह्रदमि ज्योतिः प्रभामण्डलमुद्ययौ । 15 / 82 उसमें से बिजली के समान चमकीला एक तेजो मंडल निकला । For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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