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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 374 कालिदास पर्याय कोश वधर्भक्तिमती चैनामर्चितामातपोवनात्। 1/90 तुम्हारी वधू को चाहिए कि वह बड़ी भक्ति से इसकी पूजा करे और जब यह वन को जाने लगे, तब ये तपोवन के बाड़े तक उसके पीछे-पीछे जायें। वरः स वध्वा सह राजमार्ग प्राप ध्वजच्छायनिवारितोष्णम्। 7/4 उस समय अज अपनी पत्नी के साथ राजपथ पर चले जा रहे थे, नगर में इतनी झंडियाँ लगाई गई थीं, कि धूप भी रुक गई थी। इत्युद्गताः पौरवधूमुखेभ्यः शृण्वन्कथाः श्रोत्रसखाः कुमारः। 7/16 नगर की महिलाओं के मुँह से इस प्रकार की बातें सुनते हुए कुमार अज अपने संबंधी भोज के साथ। दुकूल वासाः स वधूसमीपं निन्ये वितैश्वरोधरः।7/19 समुद्र की लहरों को दूर किनारे तक ले जाती हैं, उसी प्रकार रनिवास के नम्र सेवक रेशमी कपड़े पहने इंदुमती के पास अज को ले गए। तमेव चाधाय विवाह साक्ष्ये बधूवरौ संगमयांचकार। 7/20 उसी अग्नि को विवाह का साक्षी बनाकर वर-वधू का गठजोड़ा कर दिया। नितम्बगुर्वी गुरुणा प्रयुक्ता वधूर्विधातृप्रतिमेन तेन। 7/27 उस विवाह की अग्नि का धुआँ लगने से बहू इंदुमती के गाल लाल हो गए। अचिरोपनतां स मेदिनीं नव पाणिग्रहणां वधूमिव। 8/7 नई पाई हुई पृथ्वी का राजा अज ने नई ब्याही हुई बहू के समान समझकर दयालुता के साथ पालन करना प्रारंभ किया। परिवाहमिवावलोकयन्खशुचः पौरवधूमुखाश्रुषु। 8/74 उन्हें देखकर नगर भर की स्त्रियाँ फूट-फूटकर रोने लगीं, मानो अज का शोक इतनी आँखों से बह निकला हो। प्रथममन्यभृताभिरुदीरिताः प्रविरला इव मुग्धवधूकथाः। 9/34 कोयल ने कूक सुनाई तो ऐसा जान पड़ा, मानो कहीं कोई मुग्धा नायिका ही बोल उठी हो। सदृशमिष्टसमागमनिर्वृतिं वनितयानितया रजनीवधूः। 9/38 वैसे ही रात्रि रूपी नायिका भी वसंत के आने से छोटी होती चली गई। परभृताभिरितीव निषेदिते स्मरमते रमते स्म वधूजनः। 9/47 उन दिनों कोयल की कूक मानो कामदेव का यह आदेश सुना रही थी, कि (हे स्त्रियों रूठना छोड़ दो), यह सुनकर सभी स्त्रियाँ फिर रमण करने लगीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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