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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 367 रघुवंश 4. कलत्र :-[गड् + अत्रन्, गकारस्य ककारः डलयोरभेदः] पत्नी। कलत्रवन्तमात्मान्मवरोधे महत्यपि। 1/32 वैसे तो राजा दिलीप की बहुत सी रानियाँ थी, पर वे यदि अपने को स्त्री वाला समझते थे तो। वसुधेयमवेक्ष्यतां त्वया वसुमत्या हि नृपाः कलत्रिणः। 8/83 इसलिए सब शोक छोड़कर सावधान होकर आप पृथ्वी का पालन कीजिए, क्योंकि राजा की सच्ची धर्मचारिणी तो पृथ्वी है। येषु दीर्घतपसः परिग्रहो वासवक्षणकलत्रतां ययौ। 11/33 जहाँ महातपस्वी गौतम की स्त्री अहल्या थोड़ी देर के लिए इंद्र की पत्नी बन गई थीं। कलत्रवानहं बाले कनीयांसं भजस्व मे। 12/34 मेरा तो विवाह हो चुका है (मैं स्त्री वाला हूँ), तुम मेरे छोटे भाई के पास जाओ। कलत्रनिन्दागुरुणा किलैवमभ्याहतं कीर्तिविपर्ययेण। 14/33 अपनी पत्नी पर लगाए हुए इस भीषण कलंक को सुनकर सीतापति राम का हृदय। कुशः प्रवासस्थ कलत्रवेषामदृष्टपूर्वां वनितामपश्यत्। 16/4 कुश को एक स्त्री दिखाई दी, उसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था, पर उसका वेश देखने से जान पड़ता था कि उसका पति परदेस चला गया है। 5. कान्ता :-[कम् + क्त + टाप्] प्रेमिका या लावण्यमयी स्त्री, गृह स्वामिनी, पत्नी। पूर्वाकाराधिक तररुचा संगतः कान्तयासौ लीलागारेष्वरमत पुनर्नन्दनाभ्यन्तरेषु। 8/95 तत्काल देवता बनकर पहले शरीर से भी अधिक सुंदर शरीर वाली भार्या के साथ नंदन वन के विलास भवनों में विहार करने लगे। रात्रावनाविष्कृत दीप भासः कान्तामुखश्री वियुता दिवापि। 16/20 आजकल न तो रात को दीपकों की किरणें निकलती हैं, न दिन में सुंदरियों का मुख दिखाई देता है। तस्याः स राजोपपदं निशान्तं कामीव कान्ताहृदयं प्रविश्य। 16/40 जैसे कामी पुरुष स्त्री के हृदय में पैठ जाता है, वैसे ही कुश अयोध्या के राजभवन में प्रविष्ट हो गए। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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