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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 354 कालिदास पर्याय कोश जिनमें पान की बेलों से ढके हुए सुपारी के पेड़ खड़े हैं, इलायची की बेलों से लिपटे हुए चंदन के पेड़ लगे हैं। 3. वीरुध :-[विशेषेण रुणद्धि अन्यान् वृक्षान :-वि + रुध् + क्विप पक्षे टाप उपसर्गस्य दीर्घः] लता, शाखा। अभिभूय विभूति मार्तवीं मधुगन्धाति शयेन वीरुधाम्। 8/36 उस स्वर्गीय माला में इतना अधिक मधु और इतनी अधिक गंध थी, कि उसके आगे वसंत के वृक्षों और लताओं का मधु और सुवास लजा जाता था। 4. व्रतति :-लता, शाखा।। अपश्यतां दाशरथी जनन्यौ छेदादिवोपजतरोतत्यौ। 14/1 राम की माताएँ उसी प्रकार उदास दिखती थीं, जैसे वृक्ष के कट जाने पर उसके सहारे चढ़ी हुई लताएँ मुरझा जाती हैं। लोक 1. जगत् :-[गम् + क्विप् नि० द्वित्वं तुगागमः] संसार, लोक, पृथ्वी। जगतः पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ। 1/1 मैं संसार के माता-पिता पार्वती जी और शिवजी को प्रणाम करता हूँ। एकातपत्रं जगतः प्रभुत्वं नवं वयः कान्तमिदं वपुश्च। 2/47 क्योंकि तुम एक साधारण सी गौ के पीछे इतना बड़ा राज्य (संसार), यौवन और ऐसा सुंदर शरीर छोड़ने पर उतारू हो गए हो। जगत्प्रकाशं तदशेषमिज्यया भवद् गुरुर्लयितुं ममोद्यतः। 3/48 मैंने सौ यज्ञ करने का संसार में जो यश पाया है, उसे तुम्हारे पिता मुझसे छीनना चाहते हैं। शमिताधिरधिज्यकार्मुकः कृतवानप्रतिशासनं जगत्। 8/27 तब उन्हें धीरज हुआ और उनका शोक कम हुआ, तब वे धनुष-बाण लेकर सारे संसार पर एक छत्र राज्य करने लगे। निर्दोषमभवत्सर्व माविष्कृत गुणं जगत्। 10/72 उस समय संसार से सारे दोष भाग गए और चारों ओर गुण ही गुण फैल गए। अन्यदा जगति राम इत्ययं शब्द उच्चरित एव मामगात्। 11/73 पहले संसार में राम कहने से लोग मुझे ही समझते थे। तत्रेश्वरेण जगतां प्रलयादिवोर्वी वर्षात्ययेन रुचमभ्रघनादिवेन्दोः। 13/77 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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