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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 351 लक्ष्मी को जो चंचलता का दोष लगाया जाता था पर उनका वह दोष भी तब से धुल गया, जब से वह इनके साथ रहने लगी। श्रियः पद्मनिषण्णायाः क्षौमान्तरितमेखले। 10/8 उन्हीं के पास कमल पर लक्ष्मी बैठी हुई थीं, जिनकी कमर में रेशमी वस्त्र पड़ा हुआ था। शान्ते पितर्याहृत पुण्डरीका यं पुण्डरीकाक्षमिव श्रिता श्रीः। 18/8 पिता के स्वर्ग चले जाने पर कमल धारण करने वाली लक्ष्मी ने पुण्डरीक की ही विष्णु मानकर वर लिया। लज्जा 1. लज्जा :-[लज्ज् + अ + टाप्] शर्म। स त्वं निवर्तस्व विहाय लज्जां गुरोर्भवान्दर्शित शिष्य भक्तिः। 2/40 इसलिए अब तुम लाज छोड़कर घर लौट जाओ, तुमने यह तो दिखला ही दिया है कि तुम अपने गुरु के बड़े भक्त हो। ततः सुनन्दा वचनावसाने लज्जां तनूकृत्य नरेन्द्र कन्या। 6/80 जब सुनंदा कह चुकी, तब इन्दुमती ने संकोच छोड़कर। चकार सा मत्तचकोर नेत्रा लज्जावती लाजाविसर्गमग्नौ। 7/25 मत्त चकोर के समान आँखों वाली, लजीली इन्दुमती ने धान की खीलें छोडीं। प्रणयिनीव नखक्षतमण्डनं प्रमदया मदयापितलज्जया। 9/31 मानो काम के आवेश में लाज छोड़कर किसी कामिनी ने अपने प्रियतम के शरीर पर नख-क्षत कर दिए हों। तच्चिन्त्यमानं सुकृतं तवेति जहार लज्जां भरतस्य मातुः। 14/16 यह सुनकर कैकेयी के मन में जो आत्मग्लानि लज्जा भरी हुई थी, वह सब जाती रही। 2. व्रीडा :-[व्रीड् + घञ् + टाप्, व्रीड् + अ + टाप्] लज्जा। वीडमावहति मे ससंप्रति व्यस्तवृत्ति रुदयोन्मुखे त्वयि। 11/73 ज्यों-ज्यों तुम ऊँचे चढ़ते चले जा रहे हो, त्यों-त्यों वह अर्थ तुम्हारे नाम के साथ लगता जा रहा है, यह सब देखकर मुझे लज्जा लगने लगती है। शुशुभे विक्रमोदग्रं व्रीडयावनतं शिरः। 15/27 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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