SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 319 राजा ने कलंक के डर से अपनी रानी को छोड़ दिया । तथेति प्रति पन्नाय विवृता त्मा नृपाय सः । 15/93 राजा राम ने कहा :- अच्छी बात है। तब उसने अपना सच्चा रूप दिखाया और कहा। सा यत्र सेना ददृशे नृपस्य तत्रैव समाग्ग्रमतिं चकार । 16 / 29 मार्ग में चलने वाली जितनी भी राजा कुश की सेना की टुकड़ियाँ थीं, वे सब पूरी सेना ही प्रतीत होती थीं । ततो नृपेणानु गताः स्त्रियस्ता भ्राजिष्णुना सातिशयं विरेजुः । 16/69 उस कान्तिमान राजा के साथ क्रीडा करती हुई वे रानियाँ, पहले से भी अधिक सुन्दर लगने लगीं। 24. नृपति : - [ नरान् पाति रक्षति :- नृणां पतिः; ष० त०] राजा । जातभिषङ्गो नृपतिर्निषङ्गादृद्धर्तुमैच्छत्प्रसभोद्धृतारिः । 2 / 30 बस झट राजा दिलीप ने उस सिंह को मारने के लिए तूणीर से बाण निकालने को हाथ उठाया । अथ स विषय व्यावृत्तात्मा यथा विधि सूनवे नृपति कुकुदं दत्त्वा यूनेसितातपवारणम् । 3 /70 तब संसार के सब विषय छोड़कर राजा दिलीप ने अपने नवयुवक पुत्र रघु को शास्त्रों के अनुसार छत्र, चँवर आदि राजचिह्न दे दिए। एतावदुक्त्वा प्रतियातु कामं शिष्यं महर्षेर्नृपतिर्निषध्य । 5/18 ऐसा कहकर कौत्स उठकर चलने लगे, राजा रघु ने उन्हें रोका और पूछा तमापतन्तं नृपतेरवध्यो वन्यः करीति श्रुतवान्कुमारः । 5/50 वह हाथी राजा अज की ओर चला आ रहा था, किंतु अज ने सोचा यह जंगली हाथी है, इसको मारना ठीक नहीं है। नेत्र वज्राः पौरजनस्य तस्मिन्विहाय सर्वान्नृपतीन्निपेतुः । 6/7 वैसे ही नगरवासियों की आँखें सब राजाओं से हटकर अज पर जा लगी थीं। जातः कुले तस्य किलोरुकीर्तिः कुलप्रदीपो नृपतिर्दिलीपः । 6/74 उन्हीं प्रतापी ककुत्स्थ वंश में यशस्वी राजा दिलीप ने जन्म लिया । For Private And Personal Use Only -- नृपतिः प्रकृतीरवेक्षितुं व्यवहारासन माददे युवा। 8 / 18 इधर युवा राजा अज जनता के कामों की देखभाल करने के लिए न्याय के आसन पर बैठते थे ।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy