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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 316 कालिदास पर्याय कोश 23. नृप :-[नरान् पाति रक्षति :-नृ + पा + क] राजा। भीम कान्तैनूपगुणैः स बभूवोपजीविनाम्। 1/16 राजा दिलीप से भी उनके सेवक डरते थे क्योंकि वे न्याय में बड़े कठोर थे, किन्तु राजा दिलीप इतने दयालु, उदार और गुणशाली थे, कि उनके सेवक उनकी कृपा पाने के लिए लालायित रहते थे। अलक्षिताभ्युत्पतनो नृपेण प्रसह्य सिंहः किल तां चकर्ष। 2/27 उस समय राजा दिलीप पर्वत की शोभा देख रहे थे, इसलिए उन्हें दिखाई ही नहीं पड़ा कि उस पर सिंह कब झपटा। रश्मिष्विवादाय नगेन्द्र सक्तां निवर्तयामास नृपस्य दृष्टिम्। 2/28 इस प्रकार राजा की दृष्टि को पर्वत की शोभा से इस प्रकार खींच लिया, जैसे किसी ने रस्सी में बांधकर खींच लिया हो। तस्याः प्रसन्नेन्दु मुखः प्रसादं गुरुर्नृपाणां गुरवे निवेद्य। 2/68 निर्मल चन्द्रमा के समान सुन्दर मुखवाले राजाधिराज दिलीप जब वशिष्ठ जी के पास पहुंचे, तब उनकी प्रसन्नता को देखते ही वशिष्ठ जी सब बातें पहले से समझ गए। धेनुं सवत्सां च नृपः प्रतस्थे सन्मंगलोदातर प्रभावः। 2/71 राजा ने सबसे पीछे बछड़े के साथ बैठी नुई नंदिनी की परिक्रमा की, महर्षि के आशीर्वाद पाने से उनका तेज और भी अधिक बढ़ गया था। नदीमिवान्तः सलिलां सरस्वतीं नृपः ससत्वां महिषीममन्यत। 3/9 रराजा दिलीप अपनी गर्भिणी रानी को वैसी ही महत्त्वशाली समझते थे, जैसे भीतर ही भीतर जब हाने वाली सरस्वती नदी। तयोपचाराञ्जलिखिन्नहस्तया ननन्द परिप्लवनेत्रया नृपः। 3/11 राजा को प्रणाम करने के लिए जब वे हाथ जोड़ती तो हाथ ढीले हो जाते थे और थकावट से उनकी आँखों में बार-बार आँसू आ जाते थे, ये सब देखकर राजा बड़े प्रसन्न होते थे। निवातपद्मस्तिमितेन चक्षुषा नृपस्य कान्तं पिबतः सुताननम्। 3/17 राजा दिलीप तत्काल भीतर गए और जैसे वायु के रुक जाने पर कमल निश्चल हो जाता है, वैसे ही वे एकटक होकर अपने पुत्र का मुँह देखने लगे। तथा नृपः सा च सुतने मागधी ननन्दतुस्तत्सदृशेन तत्समौ। 3/23 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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