SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 288 कालिदास पर्याय कोश तदनु ववृषुः पुष्पमाश्चर्यमेघाः। 16/87 और विचित्र प्रकार के मेघों ने आकाश से सुगंधित फूल बरसा दिए। दृष्टो हि वृण्वन्कलभप्रमाणोऽप्याशाः पुरोवातमवाप्य मेघः। 18/38 क्योंकि हाथी के छोटे बच्चे के समान छोटा दिखाई देने वाला बादल भी पुरवा पवन का सहारा पाकर चारों दिशाओं में फैल जाता है। अन्वभुत सुरतश्रमापहां मेघमुक्त विशदां च चन्द्रिकाम्। 19/39 उस चाँदनी का आनंद लेता था जो संभोग का श्रम दूर करती है और जो बादलों के न रहने से बराबर फैली रहती है। 14. वारिमुच :-[वृ + इञ् + मच्] बादल। आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव। 4/86 जैसे बादल पृथ्वी से जल लेकर फिर पृथ्वी पर बरसा देते हैं, वैसे ही महात्मा लोग भी धन को दान करने के लिए ही इकट्ठा करते हैं। मैथिल 1. जनक:- मिथिला का राजा, राजा जनक। राघवान्वितमुपस्थितं मुनिं तं निशम्य जनको जनेश्वरः। 11/35 जब राजा जनक जी को यह समाचार मिला कि विश्वामित्र जी के साथ राम और लक्ष्मण भी आए हुए हैं, तब वे पूजा की सामग्री लेकर उनकी आगवानी के लिए चले। 2. मैथिल :-[मिथिलायां भवः :-अण्] मिथिला का राजा, राजा जनक। राममिष्वसनदर्शनोत्सुकं मैथिलाय कथयांबभूव सः। 11/37 तब ठीक अवसर समझकर विश्वामित्र जी ने जनक जी से कहा कि राम भी धनुष देखना चाहते हैं। दृष्टसारमथ रुद्रकार्मुके वीर्यशुक्लमभिनन्द्य मैथिलः। 11/47 राजा जनक ने जब देखा कि शिव धनुष तोड़कर राम ने अपना पराक्रम दिखला दिया है, तब उन्होंने राम का बड़ा आदर किया। मैथिल: सपदि सत्यसंगरो राघवाय तनयामयोनिजाम्। 11/48 सत्य प्रतिज्ञा करने वाले जनक ने राम को सीता समर्पित कर दी। मैथिलस्य धनुरन्य पार्थिवैस्त्वं किलानमितपूर्वमक्षणोः। 11/72 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy