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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश लक्ष्मणः प्रथमंश्रुत्वा कोकिला मंजुवादिनीम्। 12/39 लक्ष्मण ने पहले कोयल की मीठी बोली के समान बोली सुनी। 3. परभृत :-[पृ०+अप्, कर्तरि अच् वा+भृतः] कोयल। परभृता विरुतैश्च विलसिनः स्मरबलैरबलैकरसाः कृताः। 9/4 कोयल की कूकों की सेना लेकर चलने वाले कामदेव ने ऐसा जाल बिछाया कि सभी विलासी पुरुष युवती स्त्रियों के प्रेम में सुध-बुध खो बैठे। परभृताभिरितीव निवेदिते स्मरमते रमते स्म वधूजनः। 9/41 उन दिनों कोयल की कूक मानो कामदेव का यह आदेश सुना रही थी, हे स्त्रियो! रूठना छोड़ दो। अपचार 1. अपचार :-[अप्+च+घञ्] कमी, अभाव, दोष, अपराध, दुष्कर्म। राजन्ग्रजासु ते कश्चिदपचारः प्रवर्तते। 15/47 हे राजन् ! आपकी प्रजा में कुछ वर्ण संबंधी दोष आ गया है। 2. विक्रिया :-[वि+कृ+श+टाप्] विक्षोभ, उद्वेग, क्रोध, दोष, अपराध। इत्याप्त वचनाद्रामो विनेष्यन्वर्ण विक्रियाम्। 15/48 इस विश्वास भरे वचन को सुनकर यह देखने के लिए कि वर्ण-धर्म में कहाँ दोष आया है। अपसर्प 1. अपसर्प :-[अप+सृप्+ण्वुल्, स्वार्थे कन् च] गुप्तचर, जासूस, दूत। सोधिराजोरुभुजोऽपसर्प पप्रच्छ भद्रं विजितारिभद्रः। 14/31 शेषनाग के समान बड़ी-बड़ी बाँहों और जाँघों वाले शत्रु विजयी राम ने अपने भद्र नाम के दूत से पूछा कि हमारे विषय में प्रजा क्या कहती हैं। 2. प्रणिधि :-[प्र+नि+धा+कि] जासूस, भेदिया, दूत। न तस्य मंडले राज्ञो न्यस्त प्रणिधिदीधितेः। 17/48 अतिथि ने चारों ओर दूतों का ऐसा जाल बिछा दिया कि प्रजा की कोई बात उनसे छिपी नहीं रह पाती थी। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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