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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 260 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भार्गवाय दृढ़मन्यवे पुनः सत्त्रमुद्यतमिवन्यवेदयत् । 11 /46 मानो उसने महाक्रोधी परशुरामजी को सूचना दे दी हो, कि क्षत्रियों ने अब फिर सिर उठाना प्रारंभ कर दिया है। कालिदास पर्याय कोश तं पितुर्वध भवेन मन्युना राजवंश निधनाय दीक्षितम् । 11 / 57 जिन्होंने अपने पिता के मारे जाने पर क्रोध से क्षत्रियों का नाश करने की प्रतिज्ञा कर ली थी, उन्हें देखा । त्वां प्रत्यकस्मात्कलुष प्रवृत्तावस्त्येव मन्युर्भरताग्रजे मे । 14/73 फिर भी तुम्हारे साथ जो उन्होंने यह भद्दा व्यवहार किया है, इसे देखकर मुझे उनपर बड़ा क्रोध आ रहा है। 6. रुष : - [ रुष् + क्विप्, रुष् + टाप्] क्रोध, रोष, गुस्सा । निर्बन्ध संजातरुषार्थ कार्य म चिन्तयित्वा गुरुणाहमुक्तः । 5/21 पर जब मैंने बार-बार दक्षिणा माँगने के लिए उनसे हठ किया तो वे बिगड़ खड़े हुए और मेरी दरिद्रता का विचार किए बिना ही बोल उठे। गुस्सा । 7. रोष : - [ रुष् + घञ् ] क्रोध, कोप, स रोष दष्टाधिकलोहितोष्ठैर्व्यक्तोर्ध्वरेखा भ्रकुटीर्वहद्भिः 17/58 जिन राजाओं ने क्रोध से चबा-चबाकर ओंठों को लाल कर लिया था और जो भौंहें तान-तानकर हुँकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे 8. संरम्भ :- [ सम् + रभ् + घञ्, मुम्] क्रोध, रोष, कोप । प्रणिपातप्रतीकारः संरम्भो हि महात्मनाम् । 4/64 महापुरुषों की कृपा प्राप्त करने का यही उपाय है, कि उनकी शरण में पहुँच जाया जाये । मयूर 1. कलापी / कलापिन : - [कलाप + इनि] मोर । संरम्भं मैथिली हासः क्षणसौम्यां निनाय ताम् । 12 / 36 सीताजी को हँसते हुए देखकर क्षण भर के लिए सुन्दर रूप धारण करने वाली शूर्पणखा भी एकदम बिगड़ खड़ी हुई । अन्योन्य जयसंरम्भो बवृधे वादिनोरिव । 12/92 उनका क्रोध उसी प्रकार बढ़ता जा रहा था, जैसे विजय के लिए शास्त्रार्थ करने वालों का क्रोध बढ़ता चलता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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