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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 253 श्रमजयात्प्रगुणां च करोत्यसौ तनुमतोऽनुमतः सचिवैर्ययौ। 9/49 परिश्रम करने से शरीर भी भली प्रकार गठ जाता है, इसलिए मंत्रियों से सम्मति लेकर वे आखेट के लिए निकल पड़े। संनिवेश्य सचिवेष्वतः परं स्त्रीविधेयनयौवनोऽभवत्। 19/4 कुछ दिनों तक तो उन्होंने स्वंय राजकाज देखा, फिर मंत्रियों पर राज्य का भार डालकर जवानी का रस लेने लगे। मंद 1. मंद :-[मन्द् + अच्] जड़, मंदबुद्धि, मूढ, अज्ञानी। मंदः कवियशः प्रार्थी गमिष्याम्युपहास्यताम्। 1/3 मैं हूँ तो मूर्ख, पर मेरी साध यह है कि बड़े-बड़े कवियों में मेरी गिनती हो यह सुनकर लोग मुझ पर अवश्य हँसेंगे। 2. मूढ़ :-[मुह् + क्त] नासमझ, मूर्ख, मंदबुद्धि। अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्विचारमूढः प्रतिभासि मे त्वम्। 2/47 हे राजन् ! जान पड़ता है कि तुममें यह सोचने की शक्ति भी नहीं रह गई है कि तुम्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मदन 1. अनंग :-[अन् + अच् + अङ्गः] कामदेव। आत्मलक्षण निवेदितानृतूनत्यवाहयदनंगवाहितः। 19/47 वह काम क्रीड़ा के लिए भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न प्रकार का वेश बनाया करता था, इसलिए उसके वेश को देखकर ज्ञात हो जाता था कि किस समय कौन सी ऋतु है। 2. काम :-[कम् + घञ्] कामदेव। रते गृहीतानुनयेन कामं प्रत्यर्पितस्वांगमिवेश्वरेण। 6/2 मानो साक्षात कामदेव हों, जिसे शिवजी ने रति की प्रार्थना पर फिर से जीवित कर दिया हो। 3. कुसुमास्त्र :-[कृष् + उम् + अस्त्रः] कामदेव। गान्धर्वमस्त्रं कुसुमास्त्रकान्तः प्रस्वापनं स्वप्ननिवृत्तलौल्यः। 7/61 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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