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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 229 देवताओं ने देखा कि विष्णु भगवान् शेष-शय्या पर लेटे हुए हैं। अत्यारूढं रिपोः सोढं चन्दनेनेव भोगिनः। 10/42 मैंने उस दुष्ट का दिन-दिन ऊपर चढ़ना उसी प्रकार सहा है, जैसे अपने ऊपर चढ़ते हुए साँप को चन्दन का पेड़ सह लेता है। वैनतेयशमितस्य भोगिनो भोगवेष्टित इव च्युतोमणिः। 11/59 जैसे गरुड़ से मरा हुआ कोई साँप अपने सिर से गिरी हुई मणि के चारों और कुंडली मारकर पड़ा हुआ हो। 7. राजिल :-[राज्+इलच्] साँपों की एक सरल जाति जिसमें विष नहीं होता। किं महोरगविसर्पि विक्रमो राजिलेषु गरुडः प्रवर्तते। 11/7 क्योंकि भला बड़े-बड़े सर्पो पर आक्रमण करने वाला गरुड़ क्या कभी जल के छोटे-छोटे साँपों पर आक्रमण किया करता है। 8. व्याल :-[वि+आ+अल्+अच्] साँप। तेयाच्छान्त व्यालाम वनिमपरः पौरकान्तः शशास। 16/88 जिससे सर्प शांत हो गए और कुश भली भाँति राज्य करने लगे। 9. सर्प :-[सृप्+घञ्] नाग, साँप। न तु सर्प इव त्वचं पुनः प्रतिपेदे व्यपवर्जितां श्रियम्। 8/13 जैसे साँप अपनी केंचुली छोड़कर फिर उसे ग्रहण नहीं करता, वैसे ही उन्होंने जिस राज्यलक्ष्मी को एक बार छोड़ दिया फिर स्वीकार नहीं किया। हृद्यमस्य भयदापि चाभवद्रत्नजातमिव हारसर्पयोः। 11/68 इसलिए जैसे गले के हार और सर्प दोनों में रहने वाली मणि आनंद भी देती है और भय भी। सुप्तसर्प इव दंडघट्टनाद्रोषितोऽस्मि तव विक्रमश्रवात्। 11/71 पर जैसे डंडे से छेड़ देने पर साँप फुफकार उठता है, वैसे ही तुम्हारा पराक्रम सुनकर मेरे शरीर में भी आग लग गई है। भुज 1. कर :-[करोति, कीर्यते अनेन इति, कृ (कृ)+अप्] हाथ। वामेतरस्तस्य करः प्रहर्तुर्नखप्रभाभूषित कंक पत्रे। 2/31 उनके दाहिने हाथ की उँगलियाँ उनके नखों से चमकने वाले बाणों के पंखों से चिपक गई। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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