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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 228 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश 4. फणी : - [ फणा - इनि] फणधारी साँप, साँप, सर्प । स्तनोत्तरीयाणि भवन्ति संगान्निर्मोकपट्टा: फणिभिर्विमुक्ताः । 16/17 उन खंभों से जो साँप उनसे लिपटे हैं, उनकी केचुलें छूटकर उन मूर्तियों से सट गई हैं, और वे ऐसी लगती हैं मानो उन स्त्रियों ने स्तन ढकने के लिए कपड़ा डाल लिया हो । 5. भजंग :- [भुजः सन् गच्छति गम् + खच्, मुम् डिच्च] साँप, सर्प । भुजंगपिहितं द्वारं पातालमधितिष्ठति । 1/80 कामधेनु भी पाताल लोक गई हैं और उस लोक के द्वार पर बड़े-बड़े विषधर सर्प रखवाले भी बैठे हैं। आरूढमद्रीनुदधीन्वितीर्णं भुजंगमानां वसतिं प्रविष्टम् । 6/77 पर्वतों पर, समुद्र के पार, पाताल में नागों के देश में उनका यश फैला हुआ है। आक्रान्तपूर्वमिव मुक्तविषं भुजंगं प्रोवाच कोशलपतिः प्रथमापराद्धः 19/79 पैर से दबने पर सर्प जैसे विष उगल कर शांत हो जाता है, वैसे ही शाप देकर जब वे बूढ़े मुनि शांत हो गए; तब पहले-पहल अपराध करने वाले राजा दशरथ बोले । वेला निलाय प्रसृता भुजंगा महोर्मि विस्फूर्जथुनिर्विशेषाः । 13/12 ये जो बड़ी-बड़ी लहरों के जैसे तट पर दिखाई दे रहे हैं, ये साँप हैं जो तट का वायु पीने के लिए बाहर निकल आए हैं। गारुत्मतं तीरगतस्तरस्वी भुजंगनाशाय समाददेऽस्त्रम् | 16 / 77 वहीं तट पर खड़े होकर उन्होंने धनुष को ठीक किया और उस पर नागों का नाश करने वाला गरुड़ास्त्र चढ़ाया । 6. भोगी : - [ भोग + इनि] फणदार साँप, सर्प । राजा स्वतेजो भिरदह्यतान्तर्भोगीव मन्त्रौषधिरुद्धवीर्यः । 2/32 राजा दिलीप अपने तेज से भीतर ही भीतर उसी प्रकार जलने लगे, जैसे मन्त्र और जड़ी से बँधा हुआ साँप । For Private And Personal Use Only भोगिवेष्टन मार्गेषु चन्दनानां समर्पितम् । 4/ 48 साँपों के सदा लिपटे रहने से वहाँ के चंदन के पेड़ों के चारों और गहरी रेखाएँ बन गई थीं। भोगि भोगासनासीनं ददृशुस्तं दिवौकसः । 10/7
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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