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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 223 रामेण मैथिल सुतां दशकंठकृच्छ्रात् प्रत्युद्धृतां धृतिमयीं भरतो ववन्दे। __13/77 वैसे ही राम ने रावण रूपी संकट से जिसे उबार लिया था, उस विमान में बैठी हुई सीताजी को भरतजी ने जाकर प्रणाम किया। धृतात पत्रे भरतेन साक्षादुपायसंघात इव प्रबृद्धः। 14/11 भरत हाथ में छात्र लिए हुए थे, चारों भाई ऐसे जान पड़ते थे, मानो साम, राज, दण्ड और भेद ये चारों उपाय इकट्ठे हो गए हों। ददौ दत्त प्रभावाय भरताय भृतप्रजः। 15/87 प्रजापालक राम ने भरत के मामा के कहने पर सिंधु का राज्य भरत को दे दिया। भरतस्तत्र गंधर्वान्युधि निर्जित्य केवलम्। 15/88 भरत ने वहाँ गंधर्वो को जीतकर केवल। भर्ता 1. कान्त :-[कन् (म्)+क्त] प्रेमी, पति। पोव नारायणमन्यथासौ लभेत कान्तं कथमात्मतुल्यम्। 7/13 जैसे स्वयंवर में लक्ष्मीजी ने नारायण को वर लिया, वैसे ही इन्दुमती ने भी अज को वर लिया है। बताओ तो बिना स्वयंवर के ऐसा योग्य वर कैसे मिलता। प्रीतिरोधमसहष्टि सा पुरी स्त्रीव कान्तपरिभोगमायतम्। 11/52 पर इस प्रेम के घेरे को उस नगरी ने उसी प्रकार सहन किया, जैसे कोई स्त्री अपने प्रियतम के कठोर संभोग को सहन करती है। 2. नाथ :-[नाथ्+अच्] प्रभु, स्वामी, पति। कामं जीवति मे नाथ इतिसा विजहौ शुचम्। 12/75 यह जानकर उनका शोक तो छूट गया कि मेरे पति देव जीवित हैं, पर उन्हें इस बात की बड़ी लज्जा हुई कि। 3. पति :-[पाति रक्षति-पा+इति] स्वामी, मालिक, भर्ता। . नरेन्द्र कन्यास्तमवाप्य सत्पतिं तमोनुदं दक्षसुता इवाबभुः। 3/33 जैसे दक्ष की कन्याएँ चन्द्रमा जैसे पति को पाकर प्रसन्न हुई थीं, वैसे ही राजकुमारियाँ भी रघु जैसे पति को पाकर प्रसन्न हुईं। संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा। 6/67 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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