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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 220 कालिदास पर्याय कोश सौध वासमुटजने विस्मृतः संचिकाय फलानिः स्पृहस्तपः। 19/2 कुटिया के आगे बड़े-बड़े महलों को भूल गये और फल की इच्छा छोड़कर तप करने लगे। स्वप्रिया विलसितानुकारिणी सौध जाल विवरैर्व्यलोकयत्। 19/40 वह अपने राजभवन के झरोंखों से सरयू के उस दृश्य को देखता था, जिसमें सरयू उन सुन्दरियों का अनुकरण करते हुए दिखाई देती थी। 9. हर्म्य :-[हृ+यत्, मुट् च] प्रासाद, महल, भवन, बड़ी इमारत। हर्म्याग्रसंरूढ़ तृणांकुरेषु तेजोऽविषह्यं रिपुमंदिरेषु। 6/47 सूर्य के समान प्रचंड तेज शत्रुओं के उन राजभवनों पर दिखाई देता था, जिनके उजड़ जाने पर उनमें घास जम आई है। त एव मुक्तागुण शुद्धयोऽपि हर्येषु मूच्छन्ति न चन्द्रपादाः। 16/18 जिन भवनों पर कभी मोती के समान शुभ्र चाँदनी चमका करती थी, उन पर अब चाँदनी नहीं चमकती। कार्तिकीषु सवितान हर्म्यभाग्यामिनीषु ललितांगना सखः। 19/39 कार्तिक की रात्रि में वह राजभवन के ऊपर चंदोवा तनवा देता था और सुन्दरियों के साथ उस चाँदनी का आनंद लेता था। बन्दी 1. बन्दी :-[बन्द+इन] स्तुति गायक, चारण, भाट। इति विरचितवाग्भिर्बन्दिपुत्रैः कुमारः सपदि विगत निद्रस्तल्प मुज्झांचकार। 5/75 वैसे ही चारणों की सुरचित वाणी सुनकर राजकुमार अज की नींद खुल गई और वे उठ बैठे। अथ स्तुते बन्दिभिरन्वयज्ञैः सोमार्कवंश्ये नरदेव लोके। 6/8 इतने में सब राजाओं का वंश जानने वाले भाटों ने सूर्य और चन्द्र के वंश में उत्पन्न होने वाले उन सब राजाओं की प्रशंसा की। 2. सूत :-[सू+क्त] बंदीजन, रथकार। सूतात्मजाः सवयसः प्रथितप्रबोधं प्रबोधयन्नुषसि वाग्भिरुदारवाचः। 5/65 दिन निकलते ही उनकी समान अवस्था वाले और मधुर बोलने वाले सूतों के पुत्र, यह स्तुति गा-गाकर बुद्धिमान अज को जगाने लगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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