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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 210 कालिदास पर्याय कोश राजन्ग्रजासु ते कश्चिदपचारःप्रवर्तते। 15/47 हे राजन्! आपकी प्रजा में कुछ वर्ण-धर्म संबंधी दोष आ गया है। दौरात्म्याद्रक्षसस्तां तु नात्रत्याः श्रद्दधुः प्रजाः। 15/72 पर रावण की दुष्टता का विचार करके, यहाँ की प्रजा को विश्वास नहीं होता। कदम्बमुकुलस्थूलैरभिवृष्टां प्रजाश्रुभिः। 15/99 जिस मार्ग से राम चले जा रहे थे, वह मार्ग राम के पीछे-पीछे जाने वाली जनता के आसुओं से गीला हो गया था। प्रजास्तद्गुरुणा नद्यो नभसे विवर्धिताः। 17/41 उनके पिता कुश के समय में जो प्रजा सावन की नदी के समान भरी-पूरी थी। प्रजाः स्वतन्त्रयां चक्रे शश्वत्सूर्य इवोदितः। 17/74 जैसे निकलते हुए सूर्य के दर्शन से सब पाप दूर हो जाते हैं, वैसे ही उन्होंने प्रजा को सब प्रकार से अपनी मुट्ठी में कर लिया। तेना रुवीर्येण पिता प्रजायै कल्पिष्यमाणेन ननन्द यूना। 18/2 जैसे संसार के प्राणी प्रसन्न हो जाते हैं, वैसे ही अत्यन्त प्रतापी युवराज निषध को देखकर राजा अतिथि भी प्रसन्न हुए। ख्यातं नभः शब्दं येन नाम्ना कान्तं नभोमासमिव प्रजानाम्। 18/6 उन्हें आकाश के समान साँवला नभ नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जो लोगों को सावन के महीने के समान प्रिय था। स क्षेम धन्वानाममोघ धन्वा पुत्रं प्रजाक्षेम विधानदक्षम्। 18/9 उन सफल धनुष धारी प्रजा का कल्याण करने में समर्थ और शान्त स्वभाव वाले अपने पुत्र क्षेमधन्वा की। प्रजाश्चिरं सुप्रजसि प्रजेशे ननन्दुरानन्द जलाविलाक्ष्यः। 18/29 उनके सुन्दर शासन को देखकर प्रजा की आँखों में आँसू आ जाते थे, उनके शासन में प्रजा बहुत दिनों तक सुख भोगती रही। प्रदीप 1. दीप :-[दीप्+णिच्+अच्] लैंप, दीपक, प्रकाश। निशीथदीपाः सहसा हतत्विषो बभूवुरालेख्य समर्पिता इव। 3/15 आधी रात के समय घर में रक्खे हुए दीपों का प्रकाश भी एकदम फीका पड़ गया और वे चित्र में बने हुए के समान लगने लगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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