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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 185 वंशस्य कर्तारमनन्तकीर्तिं सुदक्षिणायां तनयं ययाचे। 2/64 वर माँगा कि मेरी प्यारी रानी सुदक्षिणा के गर्भ से ऐसा यशस्वी पुत्र हो, जिससे सूर्य वंश बराबर बढ़ता चले। शापोऽप्यदृष्टतनयाननपद्मशोभे सानुग्रहो भगवता मयि पतितोऽयम्।9/80 हे मुनि ! आज तक मुझे पुत्र के मुख-कमल का दर्शन तक नहीं हुआ है, इसलिए मैं आपके शाप को वरदान हो समझता हूँ, क्योंकि इसी बहाने मुझे पुत्र तो प्राप्त होगा। कन्यकातनय कौतुक क्रियां स्वप्रभावसदृशीं वितेनतुः। 11/53 इससे बड़ा लाभ होगा कि बच्चा होने से पहले ही तुम यह सीख जाओगी, कि बच्चों से कैसे प्रेम करना चाहिए। मैथिलीतनयोद्गीतनि: स्पन्दमृगमाश्रमम्। 15/37 उस तपोवन में नहीं गए, जहाँ के मृग सीताजी के पुत्रों लव और कुश के गीत सुना करते थे। तस्यानलौजास्तनयस्तदन्ते वंशश्रियं प्राप नलाभिधानः। 18/5 उनके पीछे उनके अग्नि के समान तेजस्वी पुत्र नल राजा हुए। तस्मिन्प्रयाते परलोक यात्रां जेतर्यरीणां तनयं तदीयम्। 18/16 उस शत्रु विजयी राजा के स्वर्ग चले जाने पर अयोध्या की राज-लक्ष्मी उनके प्रतापी-पुत्र पारियात्र की सेवा करने लगी। अंशे हिरण्याक्षरिपोः स जाते हिरण्यनाभे तनये नयज्ञः। 18/25 उस नीतिज्ञ विश्वसह को हिरण्यनाभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो साक्षात् विष्णु का अंश था। 8. तनूज :-[तन+ऊ+जः] पुत्र। अवेहि गंधर्वपतेस्तनूजं प्रियंवदं मा प्रियदर्शनस्य। 5/53 मैं गन्धर्वो के राजा प्रियदर्शन का पुत्र प्रियंवद हूँ। 9. नंदन :-[नन्द्+णि+ल्युट] पुत्र । अतीन्द्रयेष्वप्युपपन्न दर्शनो बभूव भविषु दिलीपनन्दनः। 3/41 जिससे दिलीप के पुत्र रघु को उन सब वस्तुओं को देखने की शक्ति आ गई, जो किसी भी इन्द्रिय से किसी को नहीं प्रकट होती। सा चूर्णगौरं रघुनन्दनस्य धात्रीकराभ्यां करभोप मोरूः। 6/83 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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