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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 180 कालिदास पर्याय कोश तदुपस्थितमम्रहीदजः पितुराज्ञेति न भोगतृष्णया। 8/2 उसी राज्य को अज ने केवल अपने पिता की आज्ञा मानकर ही स्वीकार कर लिया, भोग की इच्छा से नहीं। पितरं प्रणिपत्य पादयोरपरित्याग मया चतात्मनः। 8/12 अपना सिर पिता के चरणों में नवाकर प्रार्थना की कि आप मुझे छोड़कर न जाइये। श्रुतदेहविसर्जनः पितुश्चिरमभूणि विमुच्च राघवः। 8/25 अपने पिता के देहत्याग का समाचार सुनकर अग्निहोत्र करने वाले अज बहुत रोए। अकरोत्स तरौर्ध्वदैहिकं पितृभक्त्या पितृकार्यकल्पवित्। 8/16 फिर अज तो यह जानते ही थे कि पिता का संस्कार किस प्रकार करना चाहिए, इसलिए उन्होंने बड़ी भक्ति से अपने पिता के श्राद्ध आदि संस्कार किये। स परायं गतेरशोच्यतां पितुरुद्दिश्य सदर्थवेदिभिः। 8/27 तत्वज्ञानी पंडितों ने जब अज को समझाया कि तुम्हारे पिता ने मोक्ष पा लिया है। पितरनन्तरमुत्तर कोशलान्समिध गम्य समाधि जितेन्द्रियः। 9/1 संयम से अपनी इन्द्रियों को जीत लेने वाले योगियों में सर्वश्रेष्ठ दशरथ ने अपने पिता के पीछे उत्तर कोशल का राज्य बड़ी योग्यता से संभाला। तच्चोदितश्च तमनुदद्धत शल्यमेव पित्रोः सकाश मवसन्नदृशोर्निनाय। 9/77 उसने राजा दशरथ से कहा कि मुझे मेरे अंधे माता-पिता के पास ले चलो, राजा दशरथ ने उस बाण से बिंधे मुनि-पुत्र को उठाया और उनके माता-पिता के पास ले गए। आनन्देनाग्रजेनेव समं ववृधिरे पितुः। 10/78 वैसे ही पिता राजा दशरथ का आनंद भी बढ़ने लगा, मानो यह आनंद उन चारों राजकुमारों का जेठा भाई हो। तौ निदेशकरणोद्यतौ पितुर्धन्विनौ चरणयोर्निपेततुः। 11/4 पिता की आज्ञा का पालन करने को प्रस्तुत होकर, दोनों राजकुमार अपने पिता के चरणों में प्रणाम करने को झुके ही थे। तौ पितुर्नयनजेन वारिणा किंचिदुक्षित शिखंड काबुभौ। 11/5 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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