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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश पुरुषः प्रबभूवाग्नेविस्मयेन सहविजाम्। 10/50 यज्ञ की अग्नि में से एक पुरुष प्रकट हुआ, जिसे देखकर यज्ञ करने वाले सभी ऋषि बड़े अचरज में पड़ गए। त्रेताग्निधूमाग्रमग्निन्द्यकीर्तेस्तस्येदमाक्रान्त विमानमार्गम्। 13/37 उसी यशस्वी ऋषि की, गार्हपत्य और आहवनीय अग्नियों से हवन सामग्री की गन्ध से मिला हुआ वह धुआँ विमान के पास तक । चिराय संतर्प्य समिद्भिरग्नि यो मंत्रपूतां तनुमप्यहौषीत्। 13/45 जिन्होंने बहुत दिनों तक अग्नि को समिधा से तृप्त करके, अंत में अपना पवित्र शरीर भी उसमें हवन कर दिया। क्रव्याद्गणपरीवारश्चिताग्निरिव जंगमः। 15/16 वह उस चिता की अग्नि के समान लग रहा था, जो धुएँ से धुंधली हो, जिसमें से चर्बी की गंध निकलती हो, जिसमें लपटें निकल रही हों और जिसके आसपास कुत्ते और गिद्ध आदि मांसभक्षी पशु-पक्षी घूम रहे हों। उदक्प्रतस्थे स्थिरधीः सानुजोऽग्नि पुरः सरः। 5/98 फिर अग्निहोत्र की अग्नि आगे करके, भाईयों के साथ वे उत्तर की ओर चल पड़े। ववृधे वैद्युतस्याग्नेर्वृष्टि सेकादिव द्युतिः। 17/16 उनके शरीर का तेज वैसे ही बढ़ गया, जैसे वर्षा के जल से बिजली की चमक बढ़ जाती है। धूमादग्नेः शिखा: पश्चायुदयादंशवो रवेः। 17/34 आग की लपट धुआँ निकलने के पीछे उठती हैं और किरणें सूर्य के उदय होने के पीछे दिखाई देती हैं। 2. अनल :-[नास्ति अल: पर्याप्तिर्यस्य-न०ब०] आग, अग्नि, अग्निदेवता। नाराचक्षेपणी याश्मनिष्पेषोत्पतितानलम्। 4/77 जब लोहे और पत्थर की भिड़न्त हो जाती थी, तो कभी-कभी आग उत्पन्न हो जाया करती थी। श्रियम वेक्ष्य स रंध्रचलामभूदनलसोऽनलसोमसमद्युतिः। 9/19 चारों ओर के राजाओं का मंडल उनके हाथ में आ गया, जिससे वे अग्नि और चन्द्रमा के समान तेजस्वी लगने लगे। वे जानते थे कि जहाँ एक भी दोष आया कि लक्ष्मी हमें छोड़कर भागी। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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