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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश वहाँ पहुँचकर वे देखते क्या है; कि संध्या के अग्निहोत्र के लिए बहुत से तपस्वी। अभ्युत्थिताग्निपिशुनैरतिथीनाश्रमोन्मुखानम्। 1/53 अग्निहोत्र के धुएँ ने आश्रम की ओर आते हुए इन अतिथियों को भी पवित्र कर दिया। हविरावर्जितं होतस्त्वया विधिवदग्निषु। 1/62 हे यज्ञ करने वाले ! आप जब शास्त्रीय विधि से अग्नि में हवन करते हैं। दिशः प्रसेदुर्मरुतो वतुः सुखाः प्रदक्षिणार्चिहविरग्निराददे। 3/14 बालक के उत्पन्न होने के समय आकाश खुल गया था, शीतल मन्द सुगन्ध वायु चल रहा था और हवन की अग्नि की लपटें दक्षिण की ओर घूमकर हवन की सामग्रियाँ ले रही थीं। सत्वं प्रशस्ते महिते मदीये वसंश्चतुर्थोऽग्निरिवाग्न्यगारे। 5/2 आप हमारी यज्ञशाला में चलिए वहाँ तीन पूजनीय अग्नि स्थापित हैं, आप भी चौथी अग्नि के समान पूजनीय होकर। उद्यन्तमग्निं शमयांबभूवुर्गजा विविग्नाः करसीकरण। 7/48 तब चिंगारी निकलने लगी, उस चिंगारी से हाथी इतने डर गए कि अपनी सूंड के जल से उस आग को बुझाने लगे। तत्रार्चितो भोजपतेः पुरोधा हुत्वाग्निभाज्यादिभिरग्निकल्पः। 7/2 वहाँ विदर्भ राज के अग्नि के समान तेजस्वी पुरोहित ने घी आदि सामग्रियों से हवन करके। पवनाग्नि समागमो ह्ययं सहितं ब्रह्म यदस्त्रतेजसा। 8/4 जब क्षात्र तेज के साथ ब्रह्म तेज मिल जाता है, तब वह वैसा ही बलशाली हो जाता है जैसे वायु का साहारा पाकर अग्नि। न चकार शरीरमग्निसात्सहदेव्या न तु जीविताशया। 8/7 वे इन्दुमती के साथ इसलिए चिता पर नहीं चढ़े, कि कहीं लोग यह न कहने लगें कि राजा अज ने विद्वान् होकर भी अपनी स्त्री के पीछे प्राण दे दिए। स्वयमेव हि वातोऽग्नेः सारथ्यं प्रतिपद्यते। 10/40 आग की सहायता के लिए वायु से कहना नहीं पड़ता, वह तो स्वयं आग को उभाड़ देता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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