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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 149 तदन्तरे सा विरराज धेनुर्दिनक्षपामध्यगतेव संध्या। 2/20 इन दोनों के बीच में वह लाल रंग की गाय ऐसी शोभा दे रही थी, जैसे दिन और रात की बीच में साँझ की ललाई। अन्येधुरात्मानु चरस्य भावं जिज्ञासमाना मुनिहोम धेनुः। 2/26 तब मुनि वशिष्टजी की गाय नंदिनी ने सोचा कि मैं अपने सेवक राजा दिलीप की परीक्षा क्यों न लूँ, कि वे सच्चे भाव से सेवा कर रहे हैं या केवल स्वार्थभाव से। तमार्यगृह्यं निगृहीत धेनुर्मनुष्य वाचा मनुवंशकेतुम। 2/33 सज्जनों के मित्र, मनुवंश के शिरोमणि राजा दिलीप नंदिनी को ले जाने वाले सिंह की मनुष्य की बोली सुनकर। दिनावसानोत्सुक बालवत्सा विसृज्यतां धेनुरियं महर्षेः। 2/45 इस महर्षि वशिष्ठजी की गौ को छोड़ दो, क्योंकि इसका छोटा सा बछड़ा साँझ हो जाने से इसकी बाट जोह रहा होगा। अथैक धेनोरपराधचंडाद्गुरोः कृशानु प्रतिमाद्धिभेषि। 2/49 यदि तुम गौ के स्वामी और अग्नि के समान अपने तेजस्वी गुरुजी से डरते हो तो। धेन्वा तदध्यासितकातराक्ष्या निरीक्ष्यमाणः सुतरां दयालुः। 2/52 राजा ने देखा कि सिंह के नीचे दबी हुई गाय कातर नेत्रों से रक्षा की भीख माँग रही है। तं विस्मितं धेनुरुवाच साधो मायां मयोद्भाव्य परीक्षितोऽसि। 2/62 राजा दिलीप को अचररज में देखकर गाय बोलने लगी-मैंने माया रचकर तुम्हारी परीक्षा ली थी। इत्थं क्षितीशेन वशिष्ठधेनुर्विज्ञापिता प्रीततरा बभूव। 2/67 राजा की यह बात सुनकर तो वशिष्ठजी की गाय नंदिनी बहुत ही प्रसन्न हुई। धेनुं सवत्सां च नृपः प्रतस्थे सन्मंगलोदग्रतरप्रभवः। 2/71 विदा लेते समय राजा ने बछड़ें के साथ बैठी हुई नंदिनी की परिक्रमा की। महर्षि के आशीर्वाद पाने से उनका तेज और भी अधिक बढ़ गया था। धेनुवत्सहरणाच्च हैहयस्त्वं च कीर्तिमपहर्तुमुद्यतः। 11/74 पहला सहस्रबाहु था जो मेरे पिता से का कामधेनु का बछड़ा छीनकर ले गया था और दूसरे तुम हो, जो मेरी कीर्ति छीनने पर कमर कसे बैठे हो। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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