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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ अंक 1. अंक :- पुं० [ अङ्क + अच्] गोद, चिह्न, संकेत । तदंक शय्याच्युतनाभिनाला कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूतिः । 5/7 हिरणियों के छोटे-छोटे बच्चे तो कुशल हैं न, जिनकी नाभि का नाल ऋषियों की गोद में ही सूखकर गिरता है । इत्युक्त्वा मैथिलीं भर्तुरंकेनिविशतीं भयात्। 12/38 सीताजी तो यह सुनते ही डर के मारे राम की गोद में जा छिपीं। 2. उत्संग : - [ उद् + सञ्ज्+घञ् ] गोद, आलिंगन, संपर्क । रहस्त्वदुत्संगनिषण्ण मूर्धा स्मरामि वानीर गृहेषुसुप्तः । 13 / 35 मुझे वे दिन स्मरण हो रहे हैं, जब मैं यहाँ एकांत में, बेंत की झोंपड़ी में, तुम्हारी गोद में सिर रखकर सोया करता था । अंशुक 1. अंशुक :- [ अंशु + क- अंशवः सूत्राणि विषया यस्य ] कपड़ा, पोशाक । नितंबवि मेदिन्या स्वस्तांशुक मलंघयत् । 4/52 मानो, वह पथ्वी का नितंब हो और जिस पर से कपड़ा हट गया हो । वातोऽपि नास्त्रं सयदंशुकानि कोलंबयेदाहरणाय हस्तम् । 6/75 स्त्रियों के वस्त्रों को वायु भी नहीं हिला सकता था, फिर उन्हें हटाने का साहस तो भला कौन करता । अरुण राग निषेधिभिरंशुकैः श्रवणलब्ध पदैश्च यवांकुरैः । 9/43 प्रात:काल की ललाई से भी अधिक लाल वस्त्रों ने कान पर रक्खे हुए जौ के अंकुरों ने । प्रबुद्ध पुंडरीकाक्षं बालात् निभांशुकम् । 10/9 वैसे ही खिले हुए कमल जैसी आँखों वाले, प्रात:काल की धूप के समान सुनहरे वस्त्र पहने विष्णु भी बड़े सुंदर लग रहे थे । For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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