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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुंडरीकात पत्रस्तं विकसत्काश चामरः । 4/17 कमल के छत्र और फूले हुए कास के चँवर लेकर रघु से होड़ करने चली । चमरान्परितः प्रवर्तिताश्वः क्वचिदाकर्णविकृष्ट भल्लवर्षी । 9/66 चामर मृग के चारों ओर अपना घोड़ा दौड़ाते हुए, भाले की नोकवाले बाण बरसाकर उन्होंने उन मृगों की चँवरवाली पूँछें काट डालीं । कपोल संसर्पितया य एषां व्रजन्ति कर्णक्षणचामरत्वम् । 13/11 93 इनके गालों पर क्षण भर के लिए लगी हुई यह फेन ऐसी दिखाई देती है, मानों इनके कानों पर चँवर टँगे हुए हों । पर्यंत संचारति चामरस्य कपोललोलो भयकाकपक्षात्। 19/43 उनके आस-पास चँवर डुलाए जाते थे और उनके गालों पर लटें लटकती रहती थीं । 2. बाल : - [ बल्+ण या बाल्+अच्] बाल, पूँछ, चँवर । नृपतीनिव तान्वियोज्य सद्यः सितबालव्यजनैर्जगाम शांतिम् । 9/66 इससे उन्हें ऐसा संतोष हुआ मानो चँवरधारी राजाओं के चँवर ही उन्होंने छीन लिए हों । ज जरा 1. जरा :-- [जृ + अङ्ग+टाप्] बुढ़ापा, क्षीणता । तस्य धर्मरतेरासीदवृद्धत्वं जरसा बिना। 1/23 छोटी ही अवस्था में वे इतने चतुर हो गए थे, कि बिना बुढ़ापा आए ही उनकी गिनती बड़े बूढ़ों में होने लगी। कैकेयी शंकवाह पलितच्छद्मना जरा । 12/2 मान बुढ़ापा, कैकेयी से शंकित होकर यह कह रहा हो । 3. वृद्धत्व : - [ वृध+क्त+त्व ] बुढ़ापा । तस्य धर्मरतेरासीद् वृद्धत्वं जरसा बिना । 1 / 23 2. वार्द्धक :- [ वृद्धानां समूहः तस्य भावः कर्म वा घुञ्] बुढ़ापा । वार्द्धके मुनिवृत्तिनां योगेनान्ते तनुत्यजाम् । 1/8 बुढ़ापे में मुनियों के समान जंगलों में जाकर तपस्या करते थे और अंत में परमात्मा का ध्यान करते हुए अपना शरीर छोड़ते थे । For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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