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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ ज्योतिर्विज्ञानशब्दकोषः ८६ । पृष्ठाङ्काः ८६ ८९ ३४ त्रिंशद्भाग त्रिशल्लव १०४ १०४ १०४, २१८ ७४, १२१ ७६ १२४ ८० त्रिदशगुरु ४७ ८५ २२० अकारादिशब्दाः पृष्ठाङ्काः | अकारादिशब्दाः त्रिंशतितम | त्रिचत्वारिंशत्तम त्रिंशत्तम ८४, ८६ त्रिचरण १२९ |त्रिजगन्नमस्य १२९ त्रिजीवा त्रिंशांश १२९ | त्रिज्या त्रिंशांशक १२९ त्रिणता ७०, ७३, ७४, ७४, | त्रितनु ७४, ७४ | त्रितय त्रिक ७४, १३१ | त्रित्रिक त्रिकपूर्वा ८ त्रित्रिकोण त्रिककुद् २१५ । | त्रिदश त्रिकालम् = (कार्यकालतत्पूर्वा- त्रिदशक परकालानि) त्रिकालज्ञ=(सर्वज्ञः) त्रिदशतम त्रिकालदर्शिन(भूतभविष्यद्वर्तमानवेत्ता) त्रिदशदीर्घिका त्रिकालविद् २०६ त्रिदशदोषविद् त्रिकृति ७६ | त्रिदशन् त्रिकृत्व | त्रिदशनाथगुरु त्रिकोण १२२, १३५, १२४ | त्रिदशपगुरु त्रिकोणगृह १२६ | त्रिदशपतिगुरु त्रिकोणभ त्रिदशपतीज्य त्रिकोणभवन १२६ | त्रिदशराजगुरु त्रिकोणलं १२६ | त्रिदशवन्ध त्रिकोत्तरा ८ त्रिदशसचिव त्रिगुण (सत्त्वादयः), त्रिदशसद्मदिवाकृत् त्रिगुणा त्रिदशाचार्य त्रिघन | त्रिदशायुध त्रिदशारातीज्य त्रिचतुष्क त्रिदशार्चित त्रिचत्वारिंश ८६ त्रिदशाज़ त्रिचत्वारिंशत् त्रिदशालय ८९ ४८ ४८ १२६ x ४८ ४७ ५८ ५४ ४७ २३८ त्रिचतुर ४७ ४७ १९८ For Private and Personal Use Only
SR No.020421
Book TitleJyotirvignan Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurkant Jha
PublisherChaukhambha Krishnadas Academy
Publication Year2009
Total Pages628
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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