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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २२ ] "अब खेचर जीवों के भेद कहते हैं " खयरा-रोमय पक्खी, चम्पक्खी य पायडा चेव । नरलोगाओ बाहिं, समुग्गपक्खी विययपक्खी ॥२२॥ (खरा) खेचर - श्राकाश में उड़ने वाले जीव (रोमय पक्खी रोमजपक्षी (य) और (चम्मय पक्खी) चर्मजपक्षी (पाडा ) प्रकट हैं- प्रसिद्ध हैं, (नरलोगाश्रो ) नरलोक से - मनुष्य लोक से ( बाहिं ) बाहर (समुग्गपक्खी) समुद्गपक्षी और (विययक्खी) तितपक्षी हैं ||२२|| भावार्थ - आकाश में उड़ने वाले तिर्यञ्च खेचर कहलाते हैं, उनके दो भेद हैं:- रोमजपक्षी और चर्मजपक्षी । रोम से जिनके पड्ड बने हैं वे रोमजपक्षी, जैसे तोता, हंस, सारस, आदि । चाम से जिनके पट्ट बने हैं वे चर्मजपक्षी, जैसे- चमगादड़ आदि । जहां मनुष्य का निवास नहीं है उस भूमि में दो तरह के पक्षी होते हैं: - समुद्गपक्षी और विततपक्षी । सिकुड़े हुए जिनके डब्बे के समान पत हों वे समुद्रपक्षी, जिनके पड्ड फैले हुए होंवे विवतपक्षी कहलाते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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