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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org [ २० ] हैं, उन सात स्थानों के नरकों के नाम ये हैं: - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा और तमस्तमप्रभा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पञ्चेन्द्रिय जीवों में नारकों के भेद कहकर अब चार गाथाओं से पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्यों भेद कहते हैं ।" "पवेन्द्रिय तिर्यञ्च के भेद" जलयर-थलयर - खयरा, तिविहा पंचेंदिया तिरिक्खा य । सुसुमार मच्छ- कच्छव, गाहा मगराइ जलचारी ||२०|| ( जलघर ) जलचर, (थलयर) स्थलचर ( खयरा) खेचर (पञ्चेंदिया) पञ्चेन्द्रिय (तिरिक्खा) तिर्यञ्च (तिविहा) त्रिविध अर्थात् तीन प्रकार के हैं, (जलचारी) जल में रहने वाले (सुसुमार) शिशुमार - सुईस, जिसका आकार भैंस जैसा होता है, (मच्छ) मत्स्य - मछली, ( कच्छव) कच्छप - कछुआ, ( गाहा ) ग्राह - घड़ियाल, (मगराइ) मकर - मगर आदि हैं ॥ २० ॥ भावार्थ- पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च के तीन भेद हैं:-जलचर स्थलचर और खेचर, जलचर जीव ये हैं:--सुईस, मछली, कछुआ, ग्राह, मकर आदि । For Private And Personal Use Only
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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