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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १९ ] मशक-मच्छर, (कंसारी) कंसारिका- जो उजाड़ जगह में पैदा होती है, (कविलडोलाई) कपिलडोलकएक किस्म का जीव जिसे गुजराती खड़माँकड़ी कहते हैं, इत्यादि (चउरिंदिया) चतुरिन्द्रिय जीव हैं ॥ १८ ॥ भावार्थ - जिन जीवों को शरीर, जीभ, नाक और आँख हो, वे चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं, जैसे:-बिच्छू, घुड़साल में पैदा होने वाला ढिंकुण नामक जीव, भौंरा, बर्रे, मक्खी, मधुमक्खी, डांस, मच्छर, टीढ़ी, कंसारिका, कपिलडोलक आदि । "अत्र पञ्चेन्द्रिय जीवों के भेद कहते हैं" पंचिदियाय चउहा, नारय- तिरिया - मणुस्स - देवाय नेरइया सत्तविहा, नायव्वा पुढविभेषणं ॥२६॥ (पंचिंदिया) पञ्चेन्द्रिय जीव (चउहा ) चतुर्धा - चार प्रकार के हैं (नारय) नारक, (तिरिया) तिर्यञ्च (मणुस्स) मनुष्य (घ) और (देवा) देव, (नेरइया) नैरयिक - नरक में रहने वाले जीव (पुढविए) पृथ्वी के भेद से (सत्तविहा) सप्तविधा - सात प्रकार के (नायव्वा) जानना ॥१६॥ भावार्थ- पञ्चेन्द्रिय जीव के चार भेद हैं:- नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, भिन्नभिन्न सात स्थानों में पैदा होने के कारण नारक जीव सात प्रकार के For Private And Personal Use Only
SR No.020410
Book TitleJivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Vrajlal Pandit
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1850
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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