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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१७ दिहा वंदियाते सव्वे आयरिया ॥ १॥ श्लोक, येषां हि वस्त्रे न पतन्ति यूका, न देशभंगः खलु येषु सत्सु, पादोदकेनापि गदोपशान्तियुगप्रधानं मुनयोवदन्ति ॥४१॥ दूहा, पंचमआरे जे थया, दोपहजारनेचार, जुगप्रधानमुनीसरु, तेठेजगआधार ॥ १ ॥ जुगप्रधान मुनीसरु, वरतमानश्रुतधार, दुप्पस्सहसरिलगे, दशवैका लिकधार ॥२॥ षव्रतधारी षट्पदे, लेता शुद्धाहार, जुगप्रधानश्री जंबुये, पूच्छया अर्थविचार ॥ ३ ॥षव्रतधारी महामुनि, जंबुजुगप्रधान, सामी सुधरमानें नमी, पूछे अर्थनिधान ॥ ४ ॥ कहे सोहम जंबुसुणों, ज्ञातासुअखंघदोय, उगणीसअध्ययनअछे, पदसंख्याता जोय ॥५॥ ढालपहिली, भवितुमे पूजो जुगप्रधान सुधरमा जगधणीरेलोल, भवितुमे प्रथमउदये सूरिवीसके, जंबुजगमणीरेलोल, ६, भवितुमे प्रभवादिक गुरुराजके, पाटे सोभतारेलोल, भवि तुमे सेवो थइ सावधानके, मिथ्यामतिखोभतारे लोल, ७, भवितुमे बीजेउदये तेवीसके, आचारजखरारे लोल, भवितुमे वयरसेन नागहस्तिके, रेवतीमित्रभलारेलोल, ८, भवितुमे तीजे उदये अठाणुंके, जगमा दीपतारेलोल, भवितुमेपाडिवयादिक जेहके, जगमणीजीपतारेलोल ९, भवितुमे हरिस्सह धरणसूरीसके, नागमित्र कह्यारे लोल, भवितुमे चोथे उदये मनलावोके, अठोत्तरलह्यारेलोल, भवितुमे पांचमे उदये सुजाणके. पंचोत्तर कह्यारेलोल, भवितुमे नंदमित्र जेष्टपुत्रके, नैषदसूरिथयारेकलोल, १० "भवितुमे छठाउदयनीवातके, सुणीनन्यासीमनराचसोरेलोल" भवितुमे सूरसेन सरिदत्तके, कुलध्वजमाचसोरे लोल, ११, गमणी जगधीरेलोला । ढालपहिलालाय, उगणीस For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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