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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ यहस्तोत्रदीया, तथा अणहिलपत्तनके विषे, बोथरागोत्रीय श्रावकोंको जयतिहुअणवरकप्परुक्ख जयजिणधन्नंतरि यह स्तोत्रदीया फेरगुरूमहाराजमेडतानगर के विषे, गणधर चोपडागोत्रीय श्रावकांकों उवसग्गहरं पासं यहस्तवनदीया, फेरजलउपरकंबली तिराणा वगेरे प्रकारकरके पंचनदी पंचपीरसाधक' संदेह दोलावली आदि अनेक ग्रंथकारक, नानाविद्यासहित, परम उपकारी परमयशसौभाग्यधारक महाप्रभावीक श्रीजिनदत्तसूरिः संवत् १२११ आषाढसुदिएकादशी के दिन अजमेरनगरमें अणशणकरके पहला सौधर्मनामादेवलोक में टक्कलनामा विमान में ४ पल्योपमके आऊखे महर्द्धिक देवतापणें उत्पन्नभए, ॥ यदुक्तं भणियं तित्थयरेहिं, महाविदेहे भवंमितइयंमि, तुह्माणं तेगुरुणो, मुक्खेसि मिस्संति ॥ १॥ टक्कलयंमिविमाणे, संपइ सोहम्मकप्प मझंमि, चउपलिओवमआउ, देवो जाओ महडीओ ॥ २ ॥ श्रीजिनवल्लभसूरिजी पट्ट प्रभाकर श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजके शिष्यादि सर्वसंघकेसामनें देवतानेंआय के ऐसावचनकहा, इसीतरेवडे प्रभाविक श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजकों बडादादाजी के नामसें सर्व संघपूजनें ध्यावणेलगे, ॥ ४४ ॥ इतिकोटिकगच्छपट्टावल्याम् अथयुगप्रघानसूरीणां क्रमोऽस्माभिजीर्णप्रतौ यथादृष्टं तद्यथा श्रीवीरे मोक्षंगते संवत् ३७५ वर्षेवल्लभीनगरी भंगोजातः श्रीवीरे मोक्षंगते ४७० विक्रमादित्य संवत्सरोजातः, ५०० वर्षे वयरखामि जन्म ५४४ जटाधरमतं निर्गतं आलंभिकायां, अथ विक्रमकालात् सं० १०८ श्रीशत्रुंजये जावडेन श्री ऋषभदेव प्रतिष्ठां उद्धारितंच ६०९ For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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