SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ श्रावकोके उसउपद्रवकों दूरकरा तब दुःखित भएथके महेश्वरी लोक बोले कि हे स्वामिन् हमारे ऊपर कृपाकरके हमारे कुटंबका उपद्रव दूर करो तब गुरुमहाराजनें उनोंका वचन ग्रहण करके उन लोकोका उपद्रव दूर करा, तब महेसरी गोत्रका श्रावक भया, तथा कितनेक शिवमतवाले श्रावक नहिं भए तब तिनमेंसें जिसके चार पुत्रथा उसका एक पुत्र ग्रहणकरा, जिसके तीनपुत्रीथी तिससे एक पुत्रीग्रहण करी, ऐसें पांचसे (५००) शिष्यहुए, सातसें (७००) साधवीहुइ, इसीतरे श्रीजिनदत्तमूरिजीमहाराज बहोत नगरोंके विषे विहारकरते रजपूत ब्राह्मणादिकको प्रतिबोधके नाहट्टा, राखेचा, भणसाली, नवलक्खा, डागा, बाफणा, इत्यादि गोत्र १४४४ अलंकृत एकलाखतीस हजार घरकुटंबप्रतिबोधके श्रावक करा, तथा एक जीर्णप्रायप्रतिमें, एवं लिखितं यथा-तेहनेपाटे ( अर्थात् श्रीजिनवल्लभमरिजीनेपाटे ) श्रीजिनदत्तसूरिजी हुंबड ज्ञाति चीतोड श्रीसंघे थाप्या, सारंगपुरनें विषे कुंवरपाल उपाध्यायकों तिहां श्रीसंघने आग्रहे निर्जराव्यो, दिन तीन अणसण पाली देव थयो, प्रत्यक्ष हूवो अने कहे थाने सांनिधकरीस, ओर तीनमहूर्त जोयाछे, १ मुहूर्त सूरिमंत्र लिधां छठे मासमृत्यु, २ गछफाट, ३ श्रेष्ठछे, महारोस्वरूप किणहिरे आगे कहेना नहिं, श्रीसंघआव्यो पहिलोमुहूर्त्तकाउसग्गवेलाव्यतीतकीधो २ मुहू काउसग्ग करिवालागा, साधुश्रावके निषेध्या, २ मूहूर्त थाप्या संवत् ११६९ चीतोडश्रीसंघे, श्रीजिनदत्तमुरिएहवो नामदीधो, श्रीजिनदत्तसरिजीये, एक साधु श्रीजिनवल्लभसूरिजीये, गच्छवाहिर For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy