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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्धउ, सुगुरुजिणेसरसूरि नियमि जिणचंदु सुसंयमि, अभयदेवु सबंगु नाणि जिणवल्लहु आगमि, जिणदत्तसूरि हिउ पट्टि तहि जिण उज्जोइउ, जिणवयणु, सावइहिं परिक्खिवि परिवरिउ मुल्लि महग्घउजिमरयणु ॥ ४ ॥ धणुहर धयवडधरय सारि सिंगार सुसज्जिय, सोहग्गिण गुडगुडिय पंच वरपडिम निमज्जिय, तियड अ तेअ अग्गलिय पिम्मपडिकारनिरुत्तिय । रइरणरह सुचलिय गरुयमाणिण मइ अन्निय । करिकडसडमुणि महिवइहिं रहिय रूवय संपुन्नभय । जिणदत्तसूरिसीहह भयणमयण हकर घियड विहडि गय ॥ ५ ॥ तवतलप्फभीसणह धम्मधीरिमसूविसुविसालह । संजमसिरभासुरह । दुसहदवदाढकरालह । नाणनयणदारुणह नियमनि सनहर समिद्धह । कम्मकोवनिहुरह । विमलपहपुछ पसिद्धह । उपसमणउपरधरदुबिसह. गुणगुंजारवजीहह । जिणदत्तसूरि अनुसरह पयपावकरडिघडसीहह ॥ ६॥ जरजलवहलरउदु लोहलहरिहिं गजंतउ मोहमच्छ उच्छलिउ । कोवकल्लोल वहंतउ मयमयरिहिं परिवरिउ । वंचबहुवेलदुसंचरु, गंथगरुय गंभीरु, असुहआवत्तभयंकरु, संसारसमुहु जु एरिसउ जसु पुणु पिक्खिविदरियइ । जिणदत्तसूरि उवएसुसुणितपरतरंडइ सुतरियइ ॥७॥ सावयकिवि कोयलिय केवि खरतरिय पसिद्धिय, ठाइ ठाइ लक्खियहिं मूढनियवित्ति विरुद्धिय । दरहिं न किंपि परत्त वेवि सुपरप्परु जुन्झहि, सुगुरु कुगुरुमणि मुणिवि न किं वि पहतरु बुज्झहिं । जिणदत्तसूरि जिन नमहि पयपउम सञ्चुनियमणि वहाहि । संसारउयहि दुत्तरि पडिय जिनहु तरंडइ चडितरहि ॥८॥ तव संयमसय नियम धम्मकम्मिण वावरियउ विसमछंदलक्खणिण सत्थ अत्थत्थ विसालह, जिणवल्लभ गुरु भत्ति वंतु पयडउ कलिकालह् । For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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