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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ जेसलमेर भांडागारे ताडपत्रीया खरतरपट्टावली जिण दिट्टई आनंदु घडइ अहरहसु चउग्गुणु, जिण दिट्टइ झडहडइ पाउ तणु निम्मलु हुइ पुणु, जिण दिहइ सुहु होइ कहु पुव्वुकिउ नासइ, जिण दिवइ हुइ रिद्धि दूरि दारिद्दु पनासइ । जिणदिइ हुइ सुह धम्ममइ अबुहहुकाई उइखहहु ॥पहु नवफणिमंडिउ पासजिणु अजयमेरि कि न पिक्खहहु ॥१॥ मयण मकरि धरिधणुहु वाण पुणि पंचम पयडहि । भूविण पिम्मपयावि वंभहरिहरु मन विनडहि ॥ भूउ पिम्मु ता वाणमयण तादरिसहि धणुहरु ॥ नवफणिमंडिउसीसि जाव नहु पेक्खहि जिणवरु, जइ पडिहसि पासजिणिद वसि नाणदंत निम्मलरयण । तसु धणुहरु वाण न भूवनहि नभुय पिंमु हुइ हइ मयण ॥ २ ।। नम फणिपासजिणिंदु गढिउ अन्नल्लि जु दिउ । अजयमेरि संभारि नरिंदु ता नियमणि तुहउ । कंचणमउ अह कलसु सिहरि साणउ रजविअउ । जणु सुतरणि तओ तवइ तिव्वु आयासिसउन्नउ । जा चुकमिसिण ढकारविण करउज्झिवि फरहरइ धर ॥ जिणदत्तसूरि धरधमलि जसि ता पसिद्धि सुरभवणिकय ॥३॥देवसूरि पहु नेमिचंदु बहुगुणिहिं पसिद्धउ, उज्जोयणु तह वद्धमाणु खरतरवरल १ जिनदृष्ट आनन्दश्चटति ( भवति ) अहरहः सुचतुर्गुणः । जिनदृष्टे झटिति हटति ( नश्यति ) पापस्तनुर्निर्मलो भवति पुनः । जिनदृष्टे सुखं भवति कष्टं पूर्वकृतं नश्यति, जिनदृष्टे भवति ऋद्धिदूरं दारिद्रं नश्यति, जिनदृष्टे भवति शुभधर्ममति-रशुभघूकादिरेति क्षयम् ॥ १ ॥ २ जिनदत्तसूरि धरसि शिरसि ततः प्रसिद्धिः सुरभूयसी, देवसूरिः प्रभुः नेमिचन्द्रोबहु गुणिभिः प्रसिद्धः, उद्द्योतनस्तथा वर्धमानः खरतरवरलब्धकः, सुगुरुर्जिनेश्वरसूरिः, नियमीजिनचन्द्रः सुसंयमी, अभयदेवः सर्वगो ज्ञानी जिनवल्लभः आगमी, जिनदत्तसूरिः स्थितः पट्टे तस्य येन उयोतितं जिनवचनं, श्रावकैः परीक्ष्य परिचरितो मूल्यं महद् दत्त्वा यथा रत्नम् ॥ २॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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