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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९५ नामें भार्या हुई) (और) ७०० धनुषका देहमान हुवा, इसके थोडे अपराधमें हकारकी, विशेष अपराधमें (मा) ऐसा काम मत करो, ऐसी दूसरी मकारकी दंडनीति हुई, इससे सर्व युगल बहुत डरने लगे ॥३॥ इति ॥ (चोंथा) अभिचन्द्रनामें कुलकर हूवा (जिसके) प्रतिरूपा नामें भार्या हुई (और) ६५० धनुषप्रमाण देहमान हूवा, इसके पिण हकार, मकार, की दंडनीति रही ॥ ४ ॥ इति ॥ (पांचमा) प्रशेनजित् नामें कुलकर हूवा, (जिसके ) चक्षुसती नामें भार्या हुई, (और) ६०० धनुषप्रमाण शरीर हूवा, इसके सामान्यपणासें हकार, मकारकी दंडनीति रही, (और) विशेष अपराधीको धिक्कारकी दंडनीति करी, जिसको धिक्कार कहे देता, सो युगल जाणता मेरा सर्वस्व हरलिया ॥५॥ इति ॥ छट्ठा मरुदेव नामें कुलकर हूवा, (इसके) श्रीकांता नामें भार्या हुई, इसका ५५० धनुषप्रमाणे शरीर हूवा, इसकी वखतमें तीनुं दंडनीति रही ॥६॥ इति ॥ सातमा नाभिनामें कुलकर हवा, ( इसके) मरुदेवी नामें भार्या हुई, इसका ५२५ धनुषका देहमान हूबा, इसकी वखतमें जघन्य अपराधीकों, हकार, कांइंक विशेष अपराधीकों, मकार, (और) उत्कृष्ट अपराधीकों, धिक्कार, इसीतरे तीनुं दंडनीति रही, (तथापि ) दिन दिन हीन कालके सबब असंतोषी युगल बहुत होने लगे, बहुतसे अपराध करने लगे, तीचं दंडनीतिका भय नहिं मानणें लगे, (इस वखतमें ) नाभिकुलकरके, मरुदेवी भार्याकी कूखसें, चवदे स्वम सूचित श्रीऋषभदेव कुमार पुत्रपणे उत्पन्न हूवे, (ये) श्रीऋषभ देवकुमर कोडों देवतावोंके पूजनीक हूवे, (और) युवान अवस्थामें राज्यपदकों धारण करके For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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