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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ ओ ही श्री परमपुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिनदत्तसूरीश्वराय मणिमण्डितभालस्थलाय श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय श्रीजिनकुशलसूरीश्वराय अकबर असुत्राणप्रतिबोधकाय श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय जलं निर्विपामिते स्वाहा ॥१॥ अथ द्वितीय केशरचंदनपूजाप्रारंभः । दोहा-केशर चंदन मृगमदा, कर धनसार मिलाप । परचा जिनदतरिका, पूज्यां तूटे पाप ॥१॥ चाल वीण बाजेकी. दीनके दयाल राज सार (२) तूं। आंकणी । आये भरुअच्छ नगर धाम धूम धृ २ बाजते निशान ठोर हर्ष रंग हूं ह० दी० ॥१॥ मुसलमान मुगलपूत फौज मौजमू । फोत मोत होगया हायकारम् हा० दी० ॥२॥ सन विघ्न देख आप हुक्म दीन यूं । लावो मेरे पास आस जीवदान दूं जी. ॥३॥ दी. मृतक पूत मंत्रसे उठाय दीन तूं, देखके अचंभ रंग दास खासळू दासखासळू ॥४॥ दी० करत सेव भावपूर तुरक राज जूं । छोडके अभक्ष्य खान हाजरी भरूं हा० ॥५॥ दी० बीज खीजके पडी प्रतिक्रमणके मूं। हाथसे उठाय पात्र ढांक दीन छ ढा० ॥६॥ दी. दामनी अमोल बोल सिद्धराज तूं । देउं वर दान छोड बंदकीन क्यूं बंधकीन क्यूंबं० ॥७॥ दत्त नाम जपत जाप करत नांह चूं । फेर में पहूंगी नांह छोड दीन फूं छो० दी०॥८॥ करोगे निहाल आप पाव पलक, रामऋद्धिसार दास चरण छांह लूं न० ॥९॥ श्लोक-मलयचन्दनकेशरवारिणा निखिलजाड्यरु For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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