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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७५ ||२|| जसु बाछिगसा पितुनाम भणे, बाहङ दे माता हर्ष घणे, इकताली से दीक्षापभणे || गु० || ३ || गुणहतरे वल्लभ पाटधरी, गुरु मायाबीजनो जापकरी, गुरु जगमें प्रगट्या तरणतरी ॥ गु० ॥ ४ ॥ मणिधारी जिनचंद उपकारी, जिनदत्तसूरिंदके पटधारी, भये दादा दूजा सुखकारी ॥ गु० || ५ || राशल पितु देल्हणदे माता, श्रीमाळगोत्र बोधन साता, दिल्ली पतसाह सुगुण गाता ॥ गु० ॥ || ६ || जसु चौथे पाट उद्योतकरी, जिन कुशलसूरिंद अतिहर्षभरी तेरेसे तीसे जनमधरी ॥ गु० ॥ ७ ॥ जसु जिल्ला जनक जगत्र जियो, वर जैतसिरी शुभ वपन लियो, गुरु छाजेडगोत्र उद्धार कियो || गु० ||८|| घन सैंतालीसे दीक्षा धरी, जिन चंद्रसूरीश्वर पाटवरी, गुणहतरे सूरिमंत्र जापकरी ॥ गु० ॥ ९ ॥ सेवामें बावनवीर खरा, जोगणियां चौसठ हुकम धरा, गुरु जगमें कई उपकारकरा ॥ गु० ॥ १० ॥ माणक सूरीश्वर पद छाजे, जिनचंद्रसूरी जगमें गाजे, भये दादा चोथा सुखकाजे ॥ गु० ॥ ११ ॥ जिण चांद उगायो उजियारो, अम्मावसकी पूनमवालो, सब श्रावक मिल पूजन चालो ॥ गु० ॥ १२ ॥ जिण अकबरकूं परचा दीना, काजीकी टोपी वश कीना । चकरीका भेद कह्या तीना ॥ गु० || १३ || गंधोदक सुरभिकलशभरी, प्रक्षालन सद्गुरु चरण परी, या पूजन कवि ऋद्धिसार करी ॥ गु० ॥ १४ ॥ श्लोकः । सुरनन्दीजलनिर्मलधारकैः प्रबलदुष्कृतदाघनिवारकैः । सकलमङ्गलवाञ्छितदायको कुशलसूरिगुरोश्चरणौ बजे ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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