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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संवन्नेत्रनिधान सिद्धिवसुधासंख्ये सुलग्नोदये, सप्तम्यां सहमासके गुरुयुतौ पक्षे सिते येन वै,। श्रीमद्विक्रमपत्तने गुणनिधी प्राप्तं पदं चोत्तमं, जीव्यात श्रीजिनपूर्वगोयतिपतिः सौभाग्यसूरिगुरुः ।। . इस समय मंडोरिया खरतर शाखाभिन्न भई, इसमें श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी, महाराज हुवे, वादमें तत्पट्टे श्रीजिनमुक्तिसूरिः तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रमूरिः हुए यह ११ मा गछभेद भया इसतरे मूल कोटिकगछ खरतर विरुद कल्पवृक्षकी इग्यारे शाखा भई श्रीजिनहर्ष मूरिजीके पाट ऊपर ७१ मा श्रीजिनसौभाग्यसू रिजी भए, तिके मारवाडमें, वाईसेरडा गामवासी, कोठारी गोत्रीय, साह श्रीकर्मचन्द्र पिता, करुणादेवी माता, विक्रम संवत् १८६२ जन्म, सुरतराम मूलनाम, संवत् १८७७ सींधिया दोलतरावके लष्करमें दिक्षा ग्रहण करी, सौभाग्यविशाल दीक्षा नाम, संवत् १८९२ मि. गशर सुदि ७ सातमकों गुरुवार शुभ लग्नमें श्रीबीकानेर नगरमें आचार्य पदकों प्राप्त भए, खजानची साह लालचंद सालमसिंह बहुत द्रव्य खरचके नंदीमहोच्छव किया, जब श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी ऐसा नाम स्थापन करा, इन महाराजने आचार्यपदकों प्राप्त होतेही जावजीव एकलठाणा करना, प्यादल विहार करना सरुकिया यानि पालखी परभिनहीवेठतेथे और परिग्रहकात्याग अंतरंगसैथा और बहोतसा असमंजस उदभट व्यवहार पंचप्रमादशिथलतापणा छोडके, आत्मकल्याण निमित्त कठिन आचार धारण किया, और अखंड ब्रह्मचर्य दयाको धारण करते हवे, आरंभादिकके त्याग करके शुद्ध प्ररूपक For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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