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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ तथा संवत् १८६६ चैत्र सुदि १५ पूर्णमासीके दिन, गडिया संघपति राजाराम, लूणीया साह श्रीतिलोकचंदनें. निकाला संघ सवालक्ष श्रावक, ११०० इग्यारेसें साधुवोंके साथ, श्रीसिद्धाचलजी गिरनारजीकी यात्रा करी, फेर गुरूमहाराज अनेक देशों में विचरते संवत् १८७० शम्मेतशिखरतीर्थराजकी यात्रा करी, फेर संवत् १८ : ५ श्रीसंघ के साथ शिखरजी की यात्रा करी, फेर दक्षिणदेश में अंतरीक पार्श्वनाथ, मगशी पार्श्वनाथ, धूलेवागढ, इत्यादि तीर्थोंकी यात्रा करते, संवत् १८८७ आषाढ सुदि १० दशमीके दिन, श्रीवीकानेर नगर में, श्रीसीमंधर स्वामी के मंदिर में ( २५ ) पचवीस चिंचकी प्रतिष्ठा करी, संवत् १८८९ माघ सुदि १० दशमी के दिन श्रीवीकानेर नगर में, सेठिया गोत्र साह अमीचंदनें वनवाया सहरके वाहिर श्रीगोडीपारसनाथजीके पासमें सम्मेतशिखरगिरी भाव विराजित सांवलिया पार्श्वनाथजी के मंदिरकी प्रतिष्ठा करी, तिस अवसर में, जेशलमेर निवासी, वाँफणा साहश्री बादरमलजी जोरावरमलजी, परिवार सहित जानलेके वीकानेर नगरमें चंदनमलजीका विवाहार्थ आये उहाँ महामहोत्सवसें गुरूमहाराजकों वंदना नमस्कार किया, सातक्षेत्र में बहुत द्रव्य खरच किया तब श्रीगुरुवर्य जिनहर्षरिजीनेने संघनिकालके यात्राका उपदेश दिया, फेर गुरूमहाराज श्रीसंघके साथ श्रीसिद्धाचलजीकी यात्राकरनें के विचा रसेवकानेर विहारकर मंडोवर नगर में चोमासा रहे, उहां संवत् १८९२ कार्त्तिक वदि ९ के रोज, चारप्रहरका अगशण करके देवलोक गए ॥ ७० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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