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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ होवे, इसतरे सिद्धान्तानुसारी वचन होणेसें कितनेक विवेकी प्राणियोंकोतो अवश्य रुचिकरहि होवेगा, इत्यादि संक्षिप्त प्रकारेण तपोट मतं निरूपतम् प्रसंगतः ॥ ६१ ॥ तत्पट्टे जिनसिंहमूरिसुगुरुजांतस्ततो धीमतां । मान्यः श्रीजिनराजसूरिमुनिपस्तत्पदृसूर्योपमः ॥ श्रीमच्छीजिनरत्नसूरिंगणभृत् श्रीजैनचन्द्रस्ततः । पूज्य श्रीजिनसौख्यसूरिरभवद्विद्यावतामुत्तमः ॥८॥ श्रीजिनचन्द्रसारिपट्टे ६२ मा श्रीजिनसिंहमूरिजी भय, तिके गणधर चोपडा गोत्रीय, साह चांपसी पिता, चतुरंगी देवी माता, संवत् १६१५ मिगशरसुदि १५ पूर्णमासीकेदिन खेतासर गाममें जन्म, मानसिंह मूलनाम, संवत् १६२३ मिगशरवदि ५ पंचमीके दिन वीकानेरमें दीक्षा, १६४० माघ सुदि ५ पंचमीके दिन जेशलमेरमें वाचक पद संवत् १६४९फागुण सुदि २ दूजके दिन लाहोर नगरमें, वीकानेर रहनेवाला वछाबत मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रने सवाक्रोड' द्रव्य खरचके वादसाहके विशेष आग्रहसै श्रीजिनचंदमूरिजीनेपदप्रदानकीयाउस आचार्य पदका उछव किया, संवत् १६७०, वेनातट (वीलाडा भावी) में विशेष विधिसै सूरिपद, संवत् १६७४, पोषवदि १३ तेरसके दिन मेडता नगरमें स्वर्ग गए ।।६२॥ तत्पद्दे६३ मा श्रीजिनराज सूरिजी भए, तिके बोथरा गोत्रीय साह धर्मसीपिता, धारलदेवी माता, संवत् १६४७, वैशाख सुदि ७ सातमके दिन जन्म, संवत् १६५६, मिगशिर सुदि ३ तीजके दिन वीकानरमें दीक्षा, राजसमुद्र दीक्षाकानाम, संवत् For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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