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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४३ तावकीनं वचनं कुर्मः उत नु तीर्थकृतां, यदनायतनं सूत्रे, भणितं तद्रूमहे नियतं ॥ १ ॥ उत्सूत्र भाषणात् पुनरनन्तसंसारकारणात् बहुशः किं लोके न त्वगरोगिणो भवेत्, प्रचुरमक्षिकासंग ः ॥ २ ॥ अर्थ - हम तुमारा वचन अंगीकारकरें या श्रीतीर्थंकरोंका वचन अंगीकार करें, अनायतनादि शब्दों का जो अर्थ सूत्र में कहा है वोहि अर्थ निश्चय पूर्वक कहेंगे, उत्सूत्र भाषण करणेंसें अनेकवार अनन्तसंसार परिभ्रमण करणाहोवेहै, लोकमे क्या चर्मरोगी पुरुषोंके बहुतमाarrier संग कल्याणकारी होवे है, नहिं रोगवृद्धिकाहि कारण होवे है २ मै संस्था बहुपरिकरोजनो जगति पूज्यतां याति, येन बहुतनययुक्ताऽपि शुकरी गूथमश्नाति ॥ १ ॥ अर्थ - इसतरे नहिं मानना चाहिये के बहुत परिवारवाला पुरुषही जगतमें पूजने योग्यहोवे और पूजा जावेहै, कारणके घणे वचांवाली भुंडणी शूवरणी विष्टाहि भक्षण करेहै ॥ १ ॥ तपोटादिमतीयोकों यह वचन कानमें कडवा और दुःखदाई लगे, तोवि विचारके भले इसीतरे होवे परन्तु गुरुजनने तो सत्यहि कहेणा चाहिये, तथाहि रूसउ वा परोमा वा विसंवा परियन्त्तर, भासिअव्वाहि जा भासा, सपक्खगुणका रिया ॥ १ ॥ अर्थ- दूसरों कोइ ( परपक्षी वा खपक्षी ) नाराज होवे, अथवा न होवे अथवा विषरूप होवे तो पण अबाधित भाषा बोलणी चाहिये औरने वा भाषा स्वपक्ष याने अपर्णेपक्षकीतो गुणकारीहि For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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