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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ माणेकचन्द्र, १९ मूलचन्द्र, २० जगतचन्द्र, २१ रत्नचन्द्र, २२ नृपचंद्र, इसतरे कुंवरजीके पक्षकी परंपराहै गुजराति छोटे पक्षकी परंपरा इसतरेहै, जीवाजी, १ वरसिंगजी २ यशवंतजी ३ रूपसंगजी ४ दामोदरजी ५ कर्मसिंहजी ६ केशवजी ७ तेजसिंहजी ८ कहानजी ९ तुलसीदासजी १० जगरूपजी ११ जगजीवनजी १२ मेघराजजी १३ सोमचंद १४ हरखचंद १५ जयचंद १६ कल्याणचंद १७ खूबचंद १८ इसतरे गुजराति लोंकोंकी परंपराहै कुंवरजीको पक्ष, गादी जामनगर कहै है, और केशवजी पक्षके पूज खूबचंद्रजीकी गादी वडोदरा, और धनराजजी पक्षके वजेराजजी पूजकी गादी जैतारण अजमेर है, इत्यादि लुंपक मतकी परंपरा है, और इसमतकी विशेषसमीक्षा परिशिष्टाधिकारमें करेंगे सो वहांसे जाणलेना, इहांपर विशेष लिखनेका अवसर नहोनेसें विराम करतें हैं, इति संक्षिप्त लुपकमतोत्पत्तिः स्वरूपं च परिकथितमिति ॥ नमोस्तु भगवते श्रीवर्द्धमानाय, ५८ श्रीजिनचन्द्रसरिजीके पाट ऊपर, श्रीजिनसमुद्रसूरिजी युगप्रधान भए, तिके वाहडमेरनिवासी, पारख गोत्रीय देकोसाह पिता, देवलदेवी माता, संवत् १५०६ जन्म, संवत् १५२१ दीक्षा, संवत् १५३० माघ सुदि १३ तेरसके दिन जेशलमेरकेवासी संघपति सोनपालने नंदी महोच्छच किया, श्रीजिनचन्द्रसरिजीनें खहस्तसें पद स्थापना करी, फेर विहार करते हूवे, सिंधुदेसगए, वहां पंचनंदी सेलयपर्वतवासी खोडीया क्षेत्रपाल सोमयक्ष माणिभद्रादि साधक भये, और देशकालानुमाने परम चारित्रवंत, ऐसे श्रीजिनसमुद्रसरिजी विक्रमार्क संवत् १५५५ में For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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