SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० लोकोंको कृपणदरिद्री होतेहुवे जाणके, उनोको अपणा मत ग्रहण कराणेंके लिये, सिद्धान्तसम्मत श्रीजिनमंदिर, श्रीजिनप्रतिमा दिकका उत्थापनकिया, मनमें आयेसो ग्रन्थमाने, बत्तीस सूत्रोंको सच्चा मान्या, परन्तु उनमें पंचांगी प्रमाणका तथा श्रीजिनप्रतिमा पूजनका अधिकारोंकों झूठा मान्या, इससें मनोमति हूवा, २५ वर्ष गृहस्थपणे लुंपकमतकी प्ररूपणा करी, पीछे लोंकेके उपदेशसें एक भाणा नामकवाणियेके बेटेने अपणे आपहि मनोकल्पित वेषधारण किया, उसका भृणारिषि नामहूवा, पीछे परिवारवधतां इस लुंपक मतमें तीनगादी हुई, नागोरी, गुजराति, उत्तरादि, इत्यादि लुंपकमतकी इससमय शाखा बहुतहै, इसका विशेषनिर्णय साम्प्रदायिक गुरुमुखसें जाणना, और लुपक लेखकके पहिलेका मिलायाहूवा, सत्तावीसपाट इसतरे है १ श्रीवीरगौतमसुधर्म, २ जंबु, ३ प्रभव, ४ सय्यंभव, ५ यशोभद्र, ६ संभूति विजय, ७ भद्रबाहू, ८ स्थूलीभद्र, ९ महागिरि, १० सुहस्ति, ११ सुप्रतिबुद्ध, १२ इन्द्रदिन्न, १३ आर्यदिन, १४वयर, १५ वज्रसेन, १६ आर्यरोह, १७ पूसगिरि, १८ फल्गुमित्र,१९ धरणीधर,२० शिवभूति,२१ आर्यभद्र,२२ आर्यनक्षत्र, २३ आर्यरक्षित, २४ आर्यनाग,२५ जेहिल, विष्णु, २६ सढील,२७ देवर्द्धिगणि, लोंका लेखकके पीछेकी उत्सूत्रपरंपरा इसतरह है, १ भाणारिषि, २ भीदारिषि, ३ न्युनारिषि, ४ भीमारिषि, ५ जगमालरिषि, ६ सरवारिषि, ७ रूपरिषि, ८ जीवारिषि, ९ कुंवरजीरिषि, १० श्रीमल्लजीरिषि, ११ रत्नसिंहरिषि, १२ केशवरिषि, १३ शिवरिषि, १४ संघराजरिषि, १५ सुखमलरिषि, १६ भागचन्द्र, १७ वालचन्द्र, For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy