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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पणा करुंगा, तो स्वतंत्र और सुखी होवुगा यह लखमसी राजकारभारी मेरे सहायहै, में बाणियाहूं इसलिये मेरा जाति वगेरामे भी बहुतसा संबंध प्रसंगादिकहै, जतिआदिक तो मूर्तिपूजन मंदिरादिक बनाने में और द्रव्य खरचकरणेमे धर्म कहेहै, परन्तुमें इनके विरुद्धधर्म कहुंगा, तो साधारणस्थितिवाले दुखीदरिद्री गरीब वगेरे सर्व लोक मेरा कहाहुवा धर्म मानेगा, इसलिये जति आदिकके पराधीनताका जो लेखकपणेंका कार्य आजसे हि छोडकर स्वतंत्र धर्मोपदेशकरणाहि ठीक है, परन्तुमें तो पढाहि नहिं शास्त्र तो संस्कृत प्राकृतादिक भाषामे है, इसलिये सरलस्वभावी किसी विद्वानका आश्रय लेकर यह अपणा मनोरथ पूर्ण करूंगा इत्यादि विचार करके वाद लोंका लखमसी राजकारभारीसें बोलाकि आप अपणी जबानपर पके रहोगे तो में आपको सच्चाधर्म कहुंगा, और बोला कि में मेरा लेखकपणेंका धंधा आजहिसे छोडदेता हूं, आपकों सच्चाधर्मवतलानेके लिये, शास्त्रदेखकर तपास करताहूं वादमें आपको सच्चाधर्म कहूंगा, ऐसा कहकर अपणे ठिकाणे चलागया, और जाकर लोंकाने विचार कराके में राजकारभारीको जवानदेकर आयाहूं, इसलिये मुझे यह कार्य करनाहि पडेगा, अन्यथा शिक्षाहोजावेगा, और झूठा ठेरुंगा इसलिये अबतो अपणा वचन पालनाहि ठीकहै, यह विचार कर अपणा मनोरथ पूर्ण करणेंके लिये घरसे निकला और घूमता हुवा एक सरल स्वभावीतपगच्छीय यति पार्श्वचंद्र नामक विद्वान्से मिला, और उसकी कुछ अभिलाषापूर्वक सेवा करने लगा, बादमें कितनेक दिन सेवा For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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