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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ यूपे चढते चित्त, ते नरवित्तसुमारगपनिवनवनित्त ॥२॥ ॐ ही श्री श्रीजिनकुशलसूरिगुरुचरणकमलेभ्यः धृपं निर्वामिते स्वाहा ॥ इति धृपपूजा ॥ अथ नैवेद्यपूजा ॥ दहा-सालदालपकवानधन, व्यंजन नवनवमांत, नेवजगुरु आगल ठवे, क्षुधादोपउपसांत ॥१॥ ढाल-पेडा मगद सेवइया लाडूमोतीचूर, खाजा ताजालापसी दोठानें घृतपूर, पिस्ता दाख विदाम छुहारा पिंड खजूर, गुरुचरणे जेढोवे भोगलहै भरपूर ॥२॥ ॐही श्री श्रीजिनकुशलसरिगुरुचरणकमलेभ्यः नैवद्य निर्चपामिते स्वाहा ॥ इति नैवद्यपूजा ॥ अथ फलपूजा लिख्यते ॥ दहा-श्रीफल शीताफल सदा, फलपूंगीफल लेय, ढोवे जे गुरुचरणपर, तसुउत्तम फलदेय ॥१॥ ढाल-श्रीफल शीताफल नारंगी दाडम दाख, खरबूजा तरबूज जंभेरी पाकी साख, करुणा कवला केला नींबू फनस सफार, गुरुचरणे फलढोई फलपामें श्रीकार ॥२॥ ॐ ह्री श्री श्रीजिनकुश लसूरिगुरुचरणकमलेभ्यः फलं निळपामिते स्वाहा ॥ इति फलपूजा ॥ ८ ॥ अथ अर्घपूजा लिख्यते ॥ अथ कलश दहा-इम जिनकुशलसूरिंदनें पूजे अष्ट प्रकार, तसुधरनवनिधिसंपजे, पुत्रादिकपरिवार ॥१॥ भट्टारकखरतरगच्छे, श्रीजिनलाभसूरिंद रत्न, राजमुनिभमरपर, सेवेपद अरविंद ॥ २॥ तासुचरणरजकणसमोज्ञानसारबुद्धिमंद, श्रीसद्गुरुपूजारची, सोधोकविजनवृंद ॥३॥ इति श्रीज्ञानसारजीउर्फलघुआनंदघनजीकृत श्रीजिनकुशलसूरीश्वरसुगुरूणां अष्टप्रकारीपूजासमाप्ता, श्रीरस्तु ॥ अथ लघुअष्ट प्रकारीपूजा लिख्यते ॥ सुरनदीजलनिर्मलधारया, प्रबलदुष्कृत For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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