SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकर्म भूमि, १५ कर्म भूमि करके युक्त और भी अनेक सास्वता पदार्थ कुंड जगति वनसंड दरवाजा परिधि अंतर वगैरे सहित और रात्रिदिनका जो विभाग उस करके सहित और तीर्थंकर चक्रवर्ती प्रतिवासुदेव वासुदेव बलदेव नारद रुद्र गणधर केवली चरमशरीरी १४ पूर्वधारी स्वस्वगुणों करके भावितात्मा युगप्रधान आचार्य उपाध्याय साधु आदिक अनेक पुरुषोंके होनेकी मर्यादा करनेवाला और सर्व मनुष्योंका जन्ममरणादि कालकी मर्यादा करनेवाला और १ राजप्रमाणे सर्व पृथ्वी रूपी स्त्रीके ललाटमें तिलक समान सर्वोत्तम समय नामका क्षेत्र है | इस समय क्षेत्रका ३ नाम है तथा हि मनुष्यक्षेत्र अढाइदीप समयक्षेत्र इस समय क्षेत्रमे ३० अकर्म भूमि ५६ अंतरदीप १५ कर्म भूमि यह १०१ क्षेत्र हैन क्षेत्रों अवस्थित अनवस्थित २ प्रकारका काल है उसमे ३० अकर्म भूमि ५६ अंतरदीप ५ महाविदेह इन ९१ क्षेत्रों में अवस्थित काल है हैमवत ऐरण्यवत हरिवर्ष रम्यक् देवकुरु उत्तरकुरु और अंतर दीप और महाविदेह नामक क्षेत्रों में अनुक्रमसें अवसर्पिणी संज्ञक - कालके प्रथम ४ आरोंके सदृश सदा अवस्थित नित्यकाल है ५६ अंतरदीपोंमे उत्तरते ३ आरेसदृशसदा अवस्थित नित्यकाल है ८०० धनुष देहमान एकांतर आहार ६४ पांशलि गुणयासी ७९ दिन अपत्य पालना करतें है और ५ भरत ५ ऐरावत यह १० क्षेत्रों में सदा अनवस्थित १०-१० कोडाकोड सागरका उत्सर्पणी अवसर्पिणी भेदसें १ प्रकारका काल है और उत्सर्पणी कालका ६ आरा अवसर्पणी कालका ६ आरा एवं १२ आरामयि For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy