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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अने एक क्रोड ४२ लाख ३० हजार २०० उगणपचास योजनकी परिधि है और १७ सो २१ योजन ऊंचो और २२०० दस योजन मूलमें और चारसो २४ योजन शिखरके ऊपर विस्तार - वाला और जांबूनद लाल सुवर्णमय और ४ सिद्धायतन कूटों करके सहित और साक्षात् अढाइदीपकी पृथवीकी रक्षाके लिये जगति समान अर्थात् कोटके सदृश ऐसा मानुषोत्तर नाम वृत्ताकार पर्वत करके वेष्टित है और ५ प्रकारके चरजोतिषी देवोंकी मर्यादा करनेवाला और सर्व १३ सो ५७ पर्वतों करके सहित और २१ सो ४३ कूटों करके सहित और १६० विजय ५ मेरु २० गजदंतगिरि ८० वखारा पर्वत ६० अंतर नदीयों करके भरतादि ४५ क्षेत्रों करके जंबू आदि १० वृक्ष ३० महाद्रह सर्व ८० द्रह महानदी ४५० सर्व ७२ लाख ८० हजार नदियों करके सहित और धातकी खंड और आधेपुष्करावर्त्तदीपके मध्यभागमे दक्षण और उत्तर दिशामें दक्षणोत्तर लांबा सर्व ४ ईक्षुकार पर्वत लालसोने मय है इस कारणसें धातकीखंड और पुष्करावर्त्तदीपके २-२ खंड पूर्वपश्चिम विभागसे है और २० वन और २० वनमुख करके सहित मागधादि ५ सो १० तीर्थ और ६ सो ८० श्रेणियों और २० वृत्ताकार वैताढ्य और १७० दीर्घ वैताढ्य करके सहित दशसो कंचनगिरि और चित्रविचित्रयमक शमक २० पर्वतों करके सुशोभित और दोयसमुद्र और अढाइदीप ४ महापाताल - कलशा और ७८८४ लघुपातालकलशा - हेमवंत और शिखरी पर्वत संबंधि ८ दाढा के ऊपर ७-७ दीप है सर्व ५६ अंतर द्वीप, ३० For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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